आज के आधुनिक एवं व्यस्त जीवन में कमर दर्द एक महामारी बनता जा रहा है जिससे लगभग हर व्यक्ति अपने जीवन काल में कभी न कभी किसी न किसी हद तक जरूर प्रभावित होता है। एक अनुमान के अनुसार आज हमारे देश में हर सातवां व्यक्ति कमर दर्द से पीड़ित है। अध्ययनों के अनुसार कमर दर्द 60 से 80 प्रतिशत वयस्कों को कभी न कभी प्रभावित करता है।
कमर दर्द कई कारणों से हो सकता है जिनमें कमर की हड्डी में बीमारी, कमर की मांसपेशियों की कोई समस्या, डिस्क की समस्या, रीढ़ में चोट, ट्यूमर तपेदिक या अन्य संक्रमण और दिमागी तनाव। हालांकि ज्यादातर मामलों में मांसपेशियों में समस्या के कारण ही कमर दर्द होता है। मांसपेशियों में खिंचाव, ठंड लगने, गलत तरीके से बैठने, ज्यादा देर तक काम करने, भारी सामान उठाने आदि कारणों से मांसपेशियों में समस्या आ सकती है।
उम्र बढ़ने के कारण डिस्क का पानी कम होता जाता है और कमर का लचीलापन घटता जाता है। कमर दर्द की समस्या से ग्रस्त करीब पांच से दस प्रतिशत लोगों में डिस्क के आसपास की नसों पर दबाव पड़ना शुरु हो जाता है। उम्र बढ़ने पर डिस्क का लचीलापन और पानी घटने के साथ ही डिस्क के बाहरी हिस्से का लिगामेंट भी ढीला पड़ जाता है। इससे थोड़ा सा वजन उठाने या हल्का झटका लगने पर डिस्क बाहर आ जाती है। इससे भी सियाटिका का दर्द होता है। डिस्क बाहर निकल कर पीछे की तरफ फूल जाती है या नसों की तरफ निकल कर उन्हें दबाने लगती है। ज्यादा दबाव आने पर मरीज को कई बार लकवा मार देता है या मरीज टट्टी-पेशाब पर से नियंत्रण खो देता है।
कमर दर्द के इलाज के लिये सबसे पहले इसके कारणों का पता लगाया जाता है। कमर दर्द के कारणों की सही-सही और सबसे अधिक जानकारी मैग्नेटिक रिजोनेंस इमेजिंग(एम.आर.आई.) से मिलती है। इससे यह पता चल जाता है कि किस नस पर कितना दबाव पड़ रहा है। आरंभिक स्थिति में कमर दर्द के इलाज के तौर पर चिकित्सक मरीज को आराम करने तथा व्यायाम करने की सलाह देते हैं। कई चिकित्सक मरीज को टैªक्शन लगाने की भी सलाह देते हैं। लेकिन मरीज को कमजोरी, सुन्नपन और पेशाब करने में दिक्कत होने पर आपात स्थिति में आपरेशन करने की जरुरत पड़ जाती है। आॅपरेशन कई तरीकों से की जाती है। आपरेशन के दौरान दोनों तरफ की हड्डी या एक तरफ की हड्डी को काटकर उसमें छेद कर दिया जाता है। कमर दर्द के कारगर एवं कष्टरहित इलाज की खोज के लिये दुनिया भर में अध्ययन- अनुसंधान चल रहे हैं। इनकी बदौलत कमर दर्द के इलाज की अनेक कारगर एवं कष्टरहित विधियां एवं तकनीकें उपलब्ध हो गयी हैं।
बढ़ी हुयी डिस्क का इंजेक्शन (स्पाइनल इंजेक्शन) के जरिये भी इलाज किया जा सकता है। इसे सलेक्टिव रूट अथवा इपिड्यूरल इंजेक्शन कहा जाता है। यह इंजेक्शन न केवल कमर दर्द से राहत दिलाने में बल्कि कमर दर्द के कारणों की जांच में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। इंजेक्शन से उन मरीजों को विशेष लाभ हो सकता है जिन्हें दवाईयों और फिजियोथिरेपी आदि से कोई फायदा नहीं हो पा रहा है। इंजेक्शन का इस्तेमाल उन मरीजों के लिये भी किया जाता है जिन्हें असहनीय कमर दर्द हो रहा हो और दवाईयों से कोई लाभ होने के बजाय नुकसान हो रहा हो अथवा जो मरीज और अधिक दवाईयां नहीं खाना चाहते हों।
स्पाइनल इंजेक्शन के जरिये कमर दर्द के इलाज के लिये फ्लोरोस्कोप की मदद से स्क्रीन पर रीढ़ की तस्वीर देखते हुये शल्य चिकित्सक प्रभावित नसों के आसपास स्टेराॅयड एवं दवाई प्रविष्ट कराते हैं। इससे नस पर पड़ने वाला दबाव समाप्त हो जाता है। लगभग 60 प्रतिशत मरीजों को स्पाइनल इंजेक्शन के बाद कमर एवं पैर के दर्द से निजात मिल जाता है। कुछ मरीजों को करीब छह माह तक दर्द से राहत रहती है जबकि कई मरीजों को स्थायी तौर पर दर्द से निजात मिल जाता है। स्पाइनल इंजेक्शन से भी मरीज को कोई फायदा नहीं होने पर आपरेशन ही एकमात्र रास्ता रह जाता है।
स्पाइनल इंजेक्शन का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इसकी मदद से कई मरीजों में आॅपरेशन की स्थिति टाली जा सकती है। स्पाइनल इंजेक्शन के लिये मरीज को अस्पताल में भर्ती नहीं करना पड़ता है।
कमर दर्द के इलाज की इंडोस्कोपी आधारित एक अन्य विधि में एक छेद के जरिये डिस्क में दूरबीन प्रवेश करायी जाती है और उसी दूरबीन से देखते हुये औजारों की मदद से डिस्क को निकाल लिया जाता है। एक नयी विधि माइक्रो डिस्कैक्टोमी कहलाती है जिसमें माइक्रोस्कोप की सहायता से कमर में मात्र एक इंच का चीरा लगाकर पूरा आपरेशन किया जा सकता है।
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