शिशुओं के लिए स्तनपान सबसे अच्छा पोषण है और इससे बाल्यावस्था में संक्रमणों का खतरा कम हो जाता है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि स्तनपान से शिशुओं में संक्रमण का खतरा कम जरूर हो जाता है लेकिन उनमें दमा और एलर्जी का खतरा बढ़ जाता है।
कनाडा और न्यूजीलैंड के अनुसंधानकर्ताओं ने अध्ययनों में पाया है कि चार सप्ताह से अधिक समय तक स्तनपान करने वाले शिशुओं में बाहर का दूध लेने वाले शिशुओं की तुलना में दमा और एलर्जी होने की आशंका दोगुनी हो जाती है। कनाडा में मैक मास्टर यूनिवर्सिटी के माल्कोम सीयर्स का कहना है कि स्तनपान बच्चों को एलर्जी और दमा से सुरक्षा प्रदान नहीं करता है बल्कि इनका खतरा बढ़ाता है।
इस अध्ययन का निष्कर्ष इस विषय में पहले किये गये अध्ययनों के निष्कर्ष से उलट है। पहले किए गए अध्ययनों में कहा गया था कि चार माह या इससे अधिक समय तक स्तनपान करने पर बच्चों में एलर्जी से सुरक्षा प्रदान होती है। स्तनपान को बढ़ावा देने वाले नेशनल चाइल्ड बर्थ ट्रस्ट का कहना है कि अब तक किए गए अधिकतर वैज्ञानिक अध्ययनों में स्तनपान के दमा के विरुद्ध सकारात्मक प्रभाव ही सामने आए हैं। इस ट्रस्ट के पाॅलिसी एंड रिसर्च आॅफिसर रोसी डौड्स का कहना है कि यह अब तक का एकमात्रा ऐसा अध्ययन है जिसमें स्तनपान का संबंध दमा से पाया गया है जबकि पहले के अध्ययनों में पाया गया था कि स्तनपान बाल्यावस्था के आरंभिक समय में दमा के खतरे को कम करता है। स्वास्थ्य पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित इस शोध रिपोर्ट के अनुसार सीयर्स और उनके सहयोगियों ने न्यूजीलैंड में ओटैगो यूनिवर्सिटी में न्यूजीलैंड के डुनेडिन शहर में 1972-1973 के बीच जन्म लेने वाले एक हजार बच्चों पर अध्ययन किया। इनमें से प्रत्येक बच्चे की 26 वर्ष की उम्र तक हर दो से पांच वर्ष में एलर्जी और श्वसन तंत्रा की जांच की गयी। इनमें से स्तनपान करने वाले अधिकतर बच्चों में बाहर का दूध लेने वाले बच्चों की तुलना में तीन से 21 वर्ष की उम्र तक बिल्ली, परागकणों और घरेलू धूल चिंचिड़यों से एलर्जी पायी गयी। इन बच्चों में नौ से 26 वर्ष की उम्र के दौरान दमा का भी अधिक प्रभाव पाया गया। आस्ट्रेलिया के पर्थ स्थित सेंटर फाॅर चाइल्ड हेल्थ रिसर्च के पैट्रिक होल्ट और टेलेथन इंस्टीच्यूट फाॅर चाइल्ड हेल्थ रिसर्च के पीटर स्लाई के इस अध्ययन के निष्कर्ष से सहमत होने के बावजूद उनका कहना है कि शिुशुओं के जीवन के आरंभिक चार से छह माह तक स्तनपान जरूरी है क्योंकि इससे बच्चे के बुद्वि और व्यवहार पर फर्क पड़ता है और कर्ण संक्रमण, डायरिया, एक्जिमा, इंफ्लुएंजा और श्वसन संबंधी बीमारियों का खतरा कम होता है।
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