प्रोस्टेट कैंसर पश्चिमी देशों में सर्वाधिक पहचाने जाने वाले कैसर में से एक है, लेकिन भारत में, इसकी पहचान में अक्सर देरी हो जाती है क्योंकि रोगी चिकित्सक के पास तभी जाते हैं जब इसके लक्षण प्रकट हो जाते हैं। यदि इसकी जल्द पहचान कर ली जाए, तो इसका सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है। वास्तव में, 10 में से 9 मामलों में, जल्दी पता लगने पर इलाज से लंबे समय तक के लिए बीमारी से निजात मिल सकती है। लेकिन, शीघ्र पहचान के लिए, बीमारी के बारे में और उसकी स्क्रीनिंग के तौर-तरीकों के बारे में जागरूकता काफी महत्वपूर्ण है। जीवन शैली में बदलाव आने और लोगों की औसत उम्र में वृद्धि होने के साथ, भारत में प्रोस्टेट कैंसर की दर में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। लेकिन इस प्रवृत्ति के प्रति जागरूकता के स्तर में इस दर से वृद्धि नहीं हुई है। पुरुषों में करीब 70 प्रतिशत प्रोस्टेट कैंसर 65 वर्ष की आयु से अधिक उम्र के पुरुषों में पहचान की जा रही है।
प्रोस्टेट कैंसर भारतीय पुरुषों में दूसरा सबसे आम कैंसर है, पहला नंबर फेफड़ों के कैंसर का है। यह मौत का छठा सबसे आम कारण है। हमने हृदय रोगों और मधुमेह पर जागरूकता के बारे काफी कुछ सुना है, लेकिन प्रोस्टेट कैंसर के बारे में अधिक बात नहीं की गयी है। भारतीयों में कैसर के प्रारंभिक लक्षणों की उपेक्षा करने या गलत समझने की प्रवृत्ति होती है, जिसके कारण इसकी पहचान और इलाज में देरी हो जाती है और दवाइयां का प्रभाव कम हो जाता है।
उम्र, सबसे प्रमुख जोखिम कारक है। यदि 65 साल से अधिक उम्र के किसी पुरुष को बार-बार, विशेष रूप से रात में बार-बार पेशाब करने की जरूरत महसूस हो, मूत्र धारा कमजोर या बाधित हो और मूत्र या वीर्य में खून हाता हो, तो इन लक्षणों को गंभीरता से लेने की जरूरत है। इन लक्षणों को प्रोस्टेट कैंसर के सबसे प्रमुख संकेत के रूप में माने जाने के बावजूद, इन लक्षणों की अक्सर अनदेखी की जाती है और बुढ़ापे को दोषी ठहराया जाता है।''
मूत्र रोग विषेशज्ञों का कहना है कि चूंकि कैंसर स्क्रीनिंग की सुविधा भारत में नियमित तौर पर उपलब्ध नहीं है, इसलिए हमारा मुख्य उद्देश्य हमारे मरीजों में प्रोस्टेट कैंसर की जल्दी पहचान करने के लिए स्क्रीनिंग शुरू करना होना चाहिए। इसके तहत 50 साल से अधिक उम्र के पुरुषों में साल में एक बार सीरम पीएसए टेस्ट के नाम से जाना जाने वाला सामान्य रक्त परीक्षण शामिल है और कम उम्र में प्रोस्टेट कैंसर के इतिहास वाले रिश्तेदारों जैसे अधिक जोखिम वाले पुरुषों यह जांच 40 साल की उम्र में शुरू कर देनी चाहिए।
एक बार जब प्रोस्टेट कैंसर की पहचान कर ली जाती है, तो दवा और सर्जरी से इसका इलाज किया जाता है। सर्जरी तब की जाती है जब रोगी को दवा से कोई फायदा नहीं होता है।
भारतीयों में प्रोस्टेट कैंसर का प्रकोप अधिक
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