डायलिसिस के रोगियों को सप्ताह में दो या तीन बार डायलिसिस केन्द्र जाकर तकलीफदेह डायलिसिस कराना पड़ता है। डायलिसिस के रोगियों को इस पीड़ा से मुक्ति दिलाने के लिए अनुसंधानकर्ताओं ने डायलिसिस के रोगियों के लिए पहनने वाली कृत्रिम किडनी का विकास किया है।
क्लिनिकल जर्नल ऑफ द अमेरिकन सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी (सी जे ए एस एन) के ताजा अंक में प्रकाशित एक रिपोर्ट में यू सी एल एल ए के डेविड गेफेन स्कूल ऑफ मेडिसीन के विक्टर गुरा कहते हैं, ''हमलोग पहनने वाली कृत्रिम किडनी के रूप में ऐसा यंत्र विकसित कर रहे हैं जो डायलिसिस के रोगियों को चौबीसों घंटे और सप्ताह में सातों दिन डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध कराएगी।
यह यंत्र एक छोटी डायलिसिस मशीन है जिसे बेल्ट के रूप में पहना जाएगा। इसका वजन करीब 10 पाउंड है और इसे नौ वोल्ट की दो बैटरी से चार्ज किया जाएगा। इस यंत्र को पहनने पर रोगियों को बड़े डायलिसिस मशीन के साथ बंधे रहने की आवश्यकता नहीं होगी और वे स्वतंत्र रूप से टहल सकते हैं, अपना कार्य कर सकते हैं या सो सकते हैं जबकि यह यंत्र उनकी किडनी की डायलिसिस करती रहेगी और किडनी के कार्य करती रहेगी।
गुरा कहते हैं, ''इस यंत्र के ईजाद से डायलिसिस रोगियों के इलाज में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ सकता है। पहनने वाली कृत्रिम किडनी न सिर्फ डायलिसिस के रोगियों की मृत्यु दर और तकलीफ को कम करेगी बल्कि इससे उनके इलाज में भी कम खर्च आएगा।'' डायलिसिस के रोगियों को हर सप्ताह घंटों तक डायलिसिस की पीड़ा सहने, रोजमर्रा की गतिविधियों तथा आहार पर नियंत्रण के साथ-साथ अपने रहन-सहन पर विशेष ध्यान देने के बावजूद काफी संख्या में डायलिसिस रोगियों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है और उनकी मृत्यु हो जाती है। अमरीका में अभी चार लाख से अधिक डायलिसिस के रोगी हैं और उन पर सालाना 30 बिलियन डालर का खर्च आता है।
गुरा कहते है, ''पहनने वाली कृत्रिम किडनी की सफलतापूर्वक जांच हो चुकी है और डायलिसिस के रोगियों पर भी इसके दो अध्ययन हो चुके हैं। इस नये अध्ययन में तकनीकीगत पहलूओं की जांच-पड़ताल की गयी है। 'हालांकि इस तकनीक के डायलिसिस रोगियों पर लंबे समय तक प्रभाव का भी क्लिनिकल अध्ययन जरूरी है ताकि इस यंत्र के इस्तेमाल से डायलिसिस के रोगियों के जीवन में महत्वपर्ण परिवर्तन लाया जा सके।''
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