भारतीय वैज्ञानिकों की कोशिश की बदौलत दिल के दौरे का प्रबंधन अब आसान होने वाला है। ये वैज्ञानिक रक्त वाहिकाओं में रक्त के प्रवाह में अवरोध पैदा करने वाले रक्त के थक्के को घुलाने वाली दवा का विकास कर रहे हैं। बाजार में उपलब्ध रक्त के थक्के को घुलाने वाली परम्परागत दवाओं के विपरीत भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित होने वाली दवा अधिक विशिष्ट होगी तथा इसके कम दुष्प्रभाव होंगे।
हालांकि रक्त थक्का घुलाने वाली दवायें नयी नहीं है। ये दवायें पश्चिमी देशों में 1970 के दशक में विकसित हुयी थी। हमारे देश में स्वदेशी तौर पर विकसित थक्के घुलाने वाली दवायें भी उपलब्ध है।
भारतीय वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा समय में इस्तेमाल की जाने वाली रक्त थक्का घुलाने वाली दवाइयों के साथ एक बड़ी समस्या जुड़ी हुयी है। ये दवाइयां खास जगह पर प्रभाव नहीं डालती। इसके कारण इन दवाइयों के सेवन से रक्त स्राव का खतरा हो सकता है और मरीज को यह दवाई अस्पताल में ही दी जाती है।
नयी दवा का विकास करने वाले वैज्ञानिकों ने पाया है कि नयी दवा खास जगह पर प्रभाव डालती है। यह न केवल रक्त स्राव को रोकती है बल्कि इसे एकल शॉट के इंजेक्शन के रूप में भी दिया जा सकता है। नैदानिक संदर्भों में इसके कई मुख्य लाभ हैं।
इसका विकास विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के अधीन कार्यरत चंडीगढ़ स्थित माइक्रोबियल टेक्नोलॉजी संस्थान (आईएमटैक) ने किया है। इस दवा पर गुजरात में चार केन्द्रों में दूसरे चरण के ट्रायल चल रहे हैं और इस दवा के अगले दो वर्शों में बाजार में आ जाने की उम्मीद है।
सीएसआईआर के महानिदेशक गिरीश साहनी ने कहा कि इस नयी दवा को एक महत्वपूर्ण उपलब्धि मानी जा सकती है क्योंकि वर्तमान में इस्तेमाल होने वाली दवाइयों के विपरीत नयी दवा का इस्तेमाल ग्रामीण इलाकों में भी हो सकेगा।
दिल का दौरा पड़ने पर चिकित्सक सबसे पहले थक्का घुलाने वाली दवाई का इस्तेमाल करते हैं और दिल के दौरे के लक्षण उभरने के छह घंटे के भीतर अगर मरीज को यह दवा दे दी जाये तो 40 से 50 प्रतिशत मामलों में मरीज की जान बचायी जा सकती है।
डाॅ. साहनी ने बताया कि हमने दस मरीजों पर दूसरे दौर का आरंभिक सीमित ट्रायल पूरा कर लिया है और इस ट्रायल के परिणाम बहुत ही अच्छे हैं। हम दूसरे दौर का विस्तारित ट्रायल षुरू करने वाले हैं और हमें उम्मीद है कि अगले वर्श अक्तूबर तक दूसरे चरण का सम्पूर्ण ट्रायल पूरा कर लेंगे।
उन्होंने उम्मीद जतायी कि दूसरे चरण के ट्रायल के पूरा हो जाने पर भारतीय औषधि महा नियंत्रक द्वारा इस दवाई के व्यावसायिकरण की अनुमाति मिल जायेगी। उन्होंने कहा, ''हमने भारतीय औषधि महानियंत्रक से इस नयी दवाई को फास्ट ट्रैक मंजूरी प्रदान करने का अनुरोध किया है क्योंकि यह जीवन रक्षक दवाई है। ''
नई दवा देश में विकसित थक्का घुलाने वाली तीसरी पीढ़ी की दवा है। पहले की पीढ़ियों की दवा भी इमटैक में ही विकसित की गयी थी।
चंडीगढ़ स्थित प्रयोगशाला ने 1990 के दशक में ही थक्का घुलाने वाली दवा का विकास करना शुरू कर दिया था और स्ट्रेप्टोकाइनेज के लिए एक तकनीकी पैकेज को विकसित में सफलता हासिल हुई थी। स्ट्रेप्टोकाइनेज एक प्रकार का प्रोटीन होता है, जो स्वाभाविक रूप से कुछ बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न किया जाता है और यह रक्त वाहिकाओं में थक्कों को घुलाने वाला एक सक्रिय पदार्थ है। अत्यधिक सस्ती प्रक्रिया से किण्वन द्वारा निर्मित यह दवा 2002 में बाजार में आयी।
सात साल बाद, 2009 में, वैज्ञानिकों ने प्रयोगशाला में रिकंबिनैंट तकनीक से स्ट्रेप्टोकाइनेज पर आधारित दूसरी पीढ़ी की थक्का को घुलाने वाली दवा विकसित की और यह पहले संस्करण की तुलना में बेहतर और सस्ती थी।
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