हार्मोनल असंतुलन हो सकता है पिट्यूटरी ग्रंथि ट्यूमर का संकेत

  • by @ हेल्थ स्पेक्ट्रम
  • at November 29, 2019 -
  • 0 Comments

पिट्यूटरी ग्रंथि के ठीक से कार्य नहीं करने पर आमतौर पर अत्यधिक या कम हार्मोन का उत्पादन होता है जिसके कारण पिंड (मास) बनने का खतरा पैदा हो जाता है। इस पिंड को ट्यूमर कहा जाता है जो कैंसर रहित (बिनाइन) या कैंसर युक्त (मैलिग्नेंट) हो सकता है। इस ग्रंथि में ऐसे ट्यूमर अंतःस्रावी तंत्र और पिट्यूटरी ग्रंथि के सामान्य कामकाज में हस्तक्षेप करके कई गंभीर चिकित्सीय समस्याएं पैदा कर सकते हैं।
एग्रीम इंस्टीच्यूट फाॅर न्यूरो साइंसेस के न्यूरोसर्जरी के निदेशक डाॅ. आदित्य गुप्ता ने कहा, “हालांकि 30 साल की उम्र के बाद ट्यूमर की घटना होने की अधिक संभावना होती है, लेकिन यह कम उम्र के लोगों को भी प्रभावित कर सकता है। रोगी की जीवित रहने की दर ट्यूमर के जटिल स्थान पर होने के अलावा, रोगी की उम्र, ट्यूमर के आकार और प्रकार जैसे अन्य कारकों पर भी निर्भर करती है। ज्यादातर, पिट्यूटरी ग्रंथि ट्यूमर कैंसर रहित होते हैं लेकिन इसके सटीक कारण अज्ञात हैं। उनमें से कुछ वंशानुगत होते हैं और कुछ दुर्लभ अनुवांशिक विकार के कारण होते हैं जिन्हें मल्टीपल इंडोक्राइन नियोप्लासिया टाइप 1 कहा जाता है। यह डिसआर्डर भी 3 अलग-अलग अंतःस्रावी-संबंधित ग्रंथियों की अधिक क्रियाषीलता या ग्रंथियों के बड़े होने का कारण बन सकता है, जिसमें पिट्यूटरी ग्रंथि भी शामिल है।''
ट्यूमर के शुरुआती चरण में ही निदान से उपचार प्रक्रिया में मदद मिल सकती है। इस अवस्था में ट्यूमर का पता चल जाने पर साइबरनाइफ नामक अग्रिम तकनीक के उपयोग से पूरी तरह नाॅन- इंवैसिव विधियों से इसका इलाज किया जा सकता है। साइबरनाइफ सबसे उन्नत विकिरण चिकित्सा है, और यह पूरी तरह से नाॅन- इंवैसिव थेरेपी है जिससे बिनाइन के साथ- साथ मैलिग्नेंट ट्यूमर का उपचार किया जा सकता है। यह थेरेपी 2 सेंटीमीटर से कम आकार वाले कुछ पिट्यूटरी ट्यूमर के लिए बेहद कारगर साबित होती है और शुरुआती चरण के प्राथमिक और चिकित्सकीय रूप से अक्षम ट्यूमर से पीड़ित मरीजों के इलाज के लिए एक बहुत ही शक्तिशाली और प्रभावी तकनीक है। यह उपचार बिल्कुल सुरक्षित है और शरीर में बार- बार होने वाली बीमारी या एक बीमारी वाले मरीजों में भी एक नया विकल्प प्रदान करता है।
डाॅ. गुप्ता ने कहा, “इस थेरेपी की विषेशताएं हैं सर्जिकल नाइफ का उपयोग करने की आवश्यकता के बिना ही किसी भी जटिल स्थान तक आसानी से पहुंचना, ट्यूमर के स्थान के अनुसार हाई डोज वाले रेडियेशन के साथ बीम की सटीकता, और सुरक्षा। यह एक डे केयर प्रक्रिया है जिसमें दर्द और जोखिम नहीं होता है और रोगी सत्र खत्म होने के तुरत बाद ही अपने दैनिक काम पर वापस आ सकता है जो आम तौर पर ट्यूमर के प्रकार पर निर्भर करता है (30 मिनट) और इस तरह रोगी को अस्पताल में ठहरने की जरूरत नहीं पड़ती है।“ 
शरीर में हार्मोन में अंतर के आधार पर, इसके लक्षण अलग- अलग हो सकते हैं। इसके सबसे आम लक्षणों में षामिल हैं - सिरदर्द, दृष्टि की समस्या, थकावट, मूड में उतार- चढ़ाव, चिड़चिड़ाहट, महिलाओं में मासिक धर्म चक्र में परिवर्तन, नपुंसकता, इनफर्टिलिटी, स्तन में अनुचित वृद्धि या स्तन दूध का उत्पादन, कुशिंग सिंड्रोम जिसमें वजन भी बढ़ता हैै, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, और हल्का मानसिक और षारीरिक चोट लगना, ग्रोथ हार्मोन में बहुत अधिक वृद्धि होने के कारण हाथ- पैर या किसी अंग का बड़ा होना, खोपड़ी और जबड़े की मोटाई में वृद्धि आदि।
पिट्यूटरी ग्रंथि मास्टर ग्लैंड के नाम से भी जाना जाता है। इसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य हार्मोन का उत्पादन करना होता है जो थायराइड, एड्रेनल ग्रंथियों, अंडाशय और वृशण सहित शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को नियंत्रित करता है। यह एक छोटे से मटर के आकार की ग्रंथि होती है जो आंखों के पीछे और मस्तिष्क के सामने नीचे की ओर स्थित होती है। कुछ ट्यूमर हार्मोन उत्पन्न करते हैं जिन्हें फंक्षनल ट्यूमर कहा जाता है, और अन्य ट्यूमर ग्रंथियों के द्वारा बहुत कम या बहुत अधिक हार्मोन का स्राव करने का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा अगर ट्यूमर निकटतम संरचना पर दबाव डालता है, उदाहरण के लिए अगर यह ऑप्टिक तंत्रिका, पर दबाव डालता है व्यक्ति की दृष्टि कम हो सकती है।
इसके अलावा यह प्रक्रिया ट्यूमर के स्थान पर सीधे रेडियेषन की हाई डोज डालने के लिए सबसे परिष्कृत इमेज गाइडेंस तकनीक का उपयोग करती है जिससे स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने की संभावना  समाप्त हो जाती है जैसा कि उपचार के किसी अन्य तरीके में होता है।
डाॅ. गुप्ता ने कहा, “उपचार के प्रत्येक सत्र में आमतौर पर लगभग 30 -50 मिनट तक का समय लगता है और यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत सस्ती है। इस तरह के जटिल ट्यूमर में इसकी सफलता दर 98 प्रतिषत होती है। पिट्यूटरी एडेनोमास से पीड़ित मरीजों को साइबरनाइफ के साथ स्टीरियोटैक्टिक रेडियो सर्जरी की जाती है और 12 महीने से अधिक समय इस पर नजर रखी जाती है। उपचार के 2-3 हफ्तों के बाद रोगी की सकारात्मक प्रतिक्रियाओं की निगरानी की जाती है और सुनिश्चित किया जाता है कि किसी भी पिंड की पुनरावृत्ति न हो। साइबरनाइफ के साथ स्टीरियोटैक्टिक रेडियो सर्जरी पिट्यूटरी एडेनोमा के लिए प्रभावी और सुरक्षित इलाज है।“


Join as an Author

Health Spectrum

Health Spectrum welcomes unsolicited articles, blog posts and other forms of content. If you are interested in writing for us, please write to us at healthspectrumindia@gmail.com.

0 Comments: