सीमित आमदनी में अपने बच्चे के लिए बेहतर लालन-पालन, बेहतर परवरिश और अच्छी शिक्षा देने तथा साथ ही साथ आज के समय में दम्पतियों की व्यस्तता के चलते परिवार को सीमित रखने की जरूरत बढ़ी है और इस कारण अधिक से अधिक दम्पति गर्भनिरोधक उपायों का सहारा लेने लगे हैं। आज कई तरह के गर्भनिरोधक उपाय मौजूद हैं जिनमें कंडोम, फीमेल कंडोम और गर्भनिरोधक गोलियां और काॅपर-टी अधिक लोकप्रिय हैं। कंडोम और फीमेल कंडोम जैसे गर्भनिरोधक का इस्तेमाल हर सम्भोग के पहले बच्चा ठहरने से रोकने के लिए किया जाता है। वहीं गर्भनिरोधक गोली का सेवन रोज करना होता है लेकिन कॉपर टी लगवाने के बाद आपको हर सेक्स से पहले गर्भनिरोध के बारे में नहीं सोचना पड़ता। लेकिन इससे कई दिक्कतें भी भी हो सकती हैं और इसलिए इसे लगवाने से पहले स्त्री रोग विषेशज्ञ से सलाह लेनी चाहिए।
काॅपर-टी क्या है
काॅपर-टी गर्भाशय के भीतर स्थापित किया जाने वाला एक छोटा सा उपकरण है जिसे अन्तरागर्भाशयी गर्भनिरोधक या आईयूडी कहा जाता है। इसे सुरक्षित, सस्ता तथा प्रभावी माना गया है। यह पांच वर्षों के लिये गर्भनिरोध संबंधी सुरक्षा भी प्रदान करती है। ये उपकरण आकार में बहुत छोटे होते हैं और प्लास्टिक के बने, कॉपर (ताँबा) में लिपटे अंग्रेजी के टी अक्षर के आकार में आते हैं। भारत में आईयूडी कॉपर-टी के लोकप्रिय नाम से बाजार में बिकती है। यह विकल्प अकसर उन महिलाओं के लिए होता है जिन्होंने हाल ही में नवजात शिशु को जन्म दिया हो। उन महिलाओं को काॅपर-टी नहीं लगवाना चाहिए जो गर्भवती हैं, जिन्हें गर्भाशय में कोई रोग हो, जिन्हें योनि से आसामान्य खून जाता हो, जिन्हें यौन संचारित रोग (एसटीडी) हो, जिन्हें पेल्विस में सूजन हो, जिन्हें माहवारी के समय दर्द होता हो, जिन्हें खून की कमी हो और जिन्हें एक्टोपिक प्रेगनेंसी हुई हो आदि।
कॉपर-टी को लगाने की प्रक्रिया संवेदनशील होती है इसलिए इसे किसी विशेषज्ञ से ही लगवाना चाहिये। इस उपकरण को महिला के गर्भाशय में स्थापित किया जाता है जिसमें आईयूडी से बंधा एक प्लास्टिक का धागा गर्भाशय ग्रीवा से योनि तक लटकता रहता हैं।
काॅपर-टी के प्रकार
इस समय बाजार में कई प्रकार की कॉपर-टी उपलब्ध हैं। उनमें दो मुख्य प्रकार के आईयूडी हैं - गैर-हार्मोनियल- कॉपर-टी आईयूडी और हार्मोनल इंट्रॉब्ररिन डिवाइस (आईयूडी)। गैर-हार्मोनिक कॉपर-टी शरीर में कोई हार्मोन नहीं छोड़ती और इसे तांबे और प्लास्टिक के साथ बनाया जाता है। कॉपर से निकलने वाले आयन शुक्राणु को मारते है, अंडे तक पहुंचने और निषेचन से रोक कर काम करते है। जैसे ही शरीर में इसे लगाया जाता है, तब से यह गर्भावस्था को रोकना शुरू कर देती है। यह बाजार में 5 साल और 10 साल की काॅपर-टी के रूप में उपलब्ध है। एक बार लगने पर, यह 5 या 10 साल तक के लिए प्रभावी होती है।
हार्मोनल इंट्रॉब्ररिन डिवाइस (आईयूडी) में प्रोजेस्टीन लेवोनोर्जेस्ट्रेल होता है। प्रोजेस्टिन गर्भाशय ग्रीवा के स्राव को मोटा करता है और गर्भाशय की परत को पतला बनाता है। हार्मोनल आईयूडी को काम शुरू करने के लिए एक सप्ताह का समय लग सकता है, इसलिए आपको अपने स्वास्थ्यसेवा प्रदाता से पूछना चाहिए कि अगर आपको यौन संबंध रखने के लिए इंतजार करना चाहिए या इस बीच में बैक-अप गर्भनिरोधक पद्धति (जैसे कंडोम) का उपयोग करना चाहिए। हार्मोनल आईयूडी 3 से 5 वर्षों के लिए प्रभावी है।
कॉपर-टी को कैसे स्थापित किया जाता है
काॅपर-टी के सिरों को मोड़कर महिला के गर्भाशय में प्रवेश कराया जाता है जिसमें कि एक पतली नली बाहर की ओर होती है। एक बार स्थापित हो जाने पर कॉपर-टी शुक्राणुनाशक के रूप में प्रभावी रूप से कार्य करने लगती है तथा कॉपर और प्लास्टिक से बना यह छोटा सा यन्त्र गर्भनिरोधक उपकरण के रूप में कार्य करने लगता है। इसका आकार ऐसा इसलिये चुना गया है क्योंकि यह गर्भाशय के आसपास के क्षेत्र में लग जाता है और वर्षो तक बिना इधर-उधर हिले वहीं लगा रहता है। यह प्लास्टिक का बना होता है जिस पर तांबे / कॉपर का पतला तार लिपटा होता है। इसे महिला के गर्भाशय में फिट कर दिया जाता है जिससे गर्भ न ठहरे। कॉपर-टी बिना हॉर्मोन या हॉर्मोन युक्त होती है। इन डिवाइस को डालने की तारीख से अधिकतम तीन से पांच वर्ष या 10 साल तक शरीर में रहने दिया जा सकता है।
कॉपर-टी कैसे काम करता है
जब एक बार कॉपर-टी स्थापित हो जाती है तो प्लास्टिक में लिपटे कॉपर (ताँबा) के तार द्वारा कॉपर के आयन निकलना प्रारम्भ हो जाते हैं जोकि गर्भाशयी वातावरण को प्रभावित करके गर्भाधान को रोकते हैं। कॉपर के आयन गर्भाशय के तरल तथा गर्भाशयी ग्रीवा के श्लेष्म से मिल जाते हैं। इस प्रकार कॉपर युक्त गर्भाशय के तरल एक शुक्राणुनाशक के रूप में कार्य करते हैं और अपने सम्पर्क में आने वाले शुक्राणु को नष्ट कर देते हैं। कॉपर के आयन शुक्राणुओं की गति को रोकते हैं क्योंकि कॉपर आयन युक्त तरल शुक्राणुओं के लिये विषाक्त होते हैं। अगर कोई संघर्षशील शुक्राणु अण्डाणु को निषेचित भी कर देता है तो कॉपर आयन युक्त वातावारण इस निषेचित अण्डे को गर्भाशय में स्थापित नहीं होने देते हैं और इस प्रकार गर्भधारण को रोकते हैं।
कॉपर-टी कितना प्रभावी है
एक बार कॉपर-टी गर्भाशय में स्थापित हो जाने पर यह पांच से दस साल तक सुरक्षा प्रदान करती है। हालांकि यह कॉपर-टी के निर्माण की प्रक्रिया पर निर्भर करता है क्योंकि कुछ उपकरण केवल पांच वर्षों के लिये सुरक्षा प्रदान करते हैं। हालांकि जब भी महिला को यह लगे कि उसे गर्भाधान की आवश्यकता है तो किसी विशेषज्ञ के द्वारा इस उपकरण को साधारण प्रक्रिया द्वारा निकलवाया जा सकता है।
काॅपर-टी के लाभ क्या हैं
कॉपर-टी की सफलता दर 98 प्रतिषत है। यह डिवाइस शरीर के भीतर गहरी स्थिति में होती है, इसलिए यह सेक्स में हस्तक्षेप नहीं करती। ओरल गोलियों के विपरीत, इस प्रकार की गर्भनिरोधक के साथ, उम्र से जुड़ा कोई जोखिम नहीं है। डिवाइस निकाली जाने के बाद महिला की फर्टिलिटी तुरंत वापस आ जाती है। मासिक धर्म के बाद 5 से 7 दिन के बीच कॉपर-टी लगायी जाती है।
कॉपर-टी के दुष्प्रभाव क्या हैं?
कॉपर-टी लगवाने के बाद कई महिलायें असमय रक्तस्राव की शिकायत करती हैं। यह अकसर शुरुआत के महीनों में होता है। कुछ महिलाओं में माहवारी के समय होने वाले दर्द के समान ही दर्द होता है। हालांकि यह दर्द माहवारी के दर्द से अलग होता है। असमय रक्तस्राव कुछ दिनों में रूक जाता है और दर्द के लिये दर्दनाशक दवाएं ली जा सकती हैं। इसके अलावा जिन महिलाओं को कॉपर के प्रति एलर्जी वाली होती हैं उनके जननाँगों में दाने पड़ सकते हैं और खुजली हो सकती है। इस स्थिति में उपकरण को हटाना ही बेहतर होता है। ऐसी स्थिति में महिला को अन्य विभिन्न प्रकार के उपलब्ध गर्भनिरोधकों के बारे में सलाह लेनी चाहिये।
कभी-कभी महिलाओं में उपकरण के लगाते समय या बाद में यह स्वतः निकल जाता है। ऐसा उपकरण के लगाने के शुरूआती महीनों में, शिशु जन्म के तुरन्त बाद लगाने पर या फिर बिना गर्भधारण के लगाये जाने पर होता है। उपकरण लगाते समय गर्भाशय मे कटाव या छेद होने के मामले भी अकसर देखे गये हैं। यह भी देखा गया है कि उपकरण गर्भाशय की दीवार में छेद कर देता है जिससे आन्तरिक घाव या रक्तस्राव होने लगता है। अगर उपकरण को तुरन्त न निकाला जाये तो इससे संक्रमण का खतरा रहता है।
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