उत्तम स्वास्थ्य लंबे और निरोग जीवन की आधार शिला है। लेकिन इसके लिये बचपन से ही अच्छी आदतों की नींव डाली जानी चाहिये। ये आदतें बच्चों को न सिर्फ स्वस्थ एवं सुसंस्कृत बनाती है बल्कि उनके भावी व्यक्तित्व का भी निर्धारण करती हैं। इस कारण बच्चों में अच्छी आदतें डालना माता-पिता का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व है। स्वास्थ्य संबंधी नियमों का पालन कर तथा अच्छी आदतों को अपनाकर बच्चा स्वस्थ तन और स्वस्थ मन से विकसित होता है। समय से उठना, शौचालय जाना, दांतों की सफाई करना, नित्य स्नान करना, समय से खाना-पीना, नियमित रूप से पढ़ाई करना, अपने शरीर व आसपास के वातावरण को साफ रखना, व्यायाम करना आदि अच्छी आदतें हैं जो बच्चों में डालनी आवश्यक है। बच्चों को प्यार से, प्रशंसा करके, पुरस्कार व प्रोत्साहन देकर अच्छी बातें सिखानी चाहिए। परन्तु अत्यधिक लाड़-प्यार भी बच्चों को जिद्दी बना देता है। जबकि दूसरे बच्चों की तारीफ करते रहने से बच्चे में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है और अत्यधिक सख्ती व दंड देते रहने से भी बच्चे उद्दंड हो जाते हैं और उनमें किसी की बात को न मानने की भावना उत्पन्न होती है। अतः माता-पिता दोनों को आपसी समझ, प्यार व संतुलित तरीके से बच्चों को समझाकर उनमें अच्छी आदतें विकसित करनी चाहिए।
स्वच्छता एवं सफाई की आदत अत्यंत महत्वपूर्ण आदत है जो बच्चों को स्वच्छ, निरोग और प्रसन्नचित्त रखती है। बच्चों को शुरू से ही दिन में एक बार नहाने और गर्मियों में दो-तीन बार नहाने की आदत डालनी चाहिये। इसके अलावा बच्चों को समय-समय पर हाथ-पैर एवं मुंह धोने की आदत डालनी चाहिये। नहाते समय जननेन्द्रिय को भी भली-भांति साफ करने की आदत डालनी चाहिये। इसके अलावा बच्चों को कान एवं नेत्रकोणों की सफाई के बारे में भी बताना चाहिये। माता-पिता को चाहिये कि वे बच्चों को बतायें कि ऊंगली से कभी भी मुंह की सफाई नहीं करें क्योंकि इससे मुंह की श्लेष्मा कला (म्यूकस) छिल सकती है और सूजन आ सकती है। दांतों की सफाई करने का प्रशिक्षण तीन वर्ष की उम्र से ही देना चाहिये। इसके अलावा उन्हें बढ़े हुए नाखूनों को समय-समय पर काटते रहने के बारे में बताना चाहिये।
बच्चों को मल-मूत्र त्यागने का सही प्रशिक्षण देना अत्यन्त आवश्यक है। छोटे बच्चों को शुरू से ही ऐसी आदतें डालनी चाहिए कि वह चड्डी, पैंट या बिस्तर को गंदा न करें। ढाई-तीन वर्ष की आयु से ही बच्चा मल-मूत्र पर नियंत्रण कर सकता है, अतः उसको सही स्थान और सफाई का सही तरीका बताना चाहिए। शौच के बाद बच्चे का हाथ साबुन से अवश्य धुलाना चाहिए।
साफ-सुथरे वस्त्र जहां तन को स्वस्थ रखते हैं वहां मन को भी उल्लासित रखने में महत्वपूर्ण सहयोग देते हैं। प्रायः देखा जाता है कि सफाई, नहलाने-धुलाने के बाद स्वच्छ वस्त्र आदि पहन कर बच्चे अत्यधिक प्रसन्न हो जाते हैं। कुछ लोग सोचते हैं कि अत्यधिक वस्त्रों का प्रयोग कर बच्चे को जाड़े से बचाया जा सकता है लेकिन ऐसा सोचना ठीक नहीं है। बच्चों को वस्त्र जरूरत भर ही पहनाना चाहिए। जाड़े से बचने के लिए बच्चे के सिर पर टोपी और पैरों में मोजे अवश्य पहनाने चाहिए। यदि किसी कारणवश बच्चे के वस्त्र गीले हो जायें तो तुरंत बदल बदल देना चाहिए। अत्यधिक गर्मी में यथा संभव हल्के रंग के मुलायम सूती वस्त्र पहनाना चाहिए तथा दिन में दो-तीन बार कपड़े बदल देने चाहिए। जिन लोगों के पास दो-तीन जोड़ी कपड़े ही हों, उन्हें भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि समय पर बारी-बारी से कपड़े धोकर बच्चे को साफ वस्त्र पहनायें। इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों के पहनने के वस्त्र रंग-बिरंगे, मुलायम, आकर्षक तथा पहनने में आरामदायक हों।
व्यायाम बच्चों के लिए अति आवश्यक है। छोटे बच्चे स्वयं ही इतना दौड़-भाग करते हैं कि उन्हें अतिरिक्त व्यायाम की आवश्यकता नहीं होती। लेकिन स्कूल जाने वाले बच्चों को खेलकूद और दौड़ आदि के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। स्कूल में पी.टी. (फिजिकल ट्रेनिंग) कक्षायें भी होती हैं जिनमें बच्चों को नियमित व सामूहिक व्यायाम की आदत पड़ती है जिससे आपसी भाई चारा तथा प्रेम भाव बढ़ता है। व्यायाम से शरीर के विभिन्न भागों में रक्त-संचार बढ़ता है जिससे शारीरिक और मानसिक विकास में मदद मिलती है तथा आपसी प्रेम-भाव बढ़ता है।
भोजन स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक रक्त-संचार बढ़ता है जिससे शारीरिक और मानसिक विकास में मदद मिलती है तथा आपसी प्रेम-भाव बढ़ता है। लेकिन उन्हें बाजार में मिलने वाली खाद्य सामग्रियां जैसे- टॉफी, चॉकलेट, भुजिया, नमकीन, पिज्जा, बर्गर इत्यादि से बचने की सलाह देनी चाहिये क्योंकि इनमें पौष्टिक तत्वों का अभाव होता है। बच्चों को निर्धारित समय पर भोजन करने की आदत डालनी चाहिये क्योंकि इससे बच्चे में नियमितता की आदत बनती है और भोजन को पाचन का समय भी मिलता है। एक बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए कि भोजन अत्यधिक सफाई से बनाया जाये व सफाई से ही परोसा एवं खिलाया जाये ताकि बच्चों के शरीर में कीटाणु न प्रवेश कर सके।
निद्रा स्वस्थ जीवन का अभिन्न अंग है। बच्चे को समय से सोने की आदत डालनी चाहिए तथा उन्हें पूरी नींद सुलाना चाहिए। छः महीने की आयु तक बच्चे 16 से 20 घंटे प्रतिदिन सोते हैं परंतु उसके बाद दिन में 6-8 घंटे जागना प्रारंभ कर देते हैं। लगभग 2 वर्ष की आयु के बच्चे 12-18 घंटे प्रतिदिन सोते हैं। यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि बच्चे को कम से कम 10 घंटे अवश्य सुलाना चाहिए। यदि बच्चा आवश्यकता भर सोता नहीं है तो उसे थकान हो जाती है, वह चिड़चिड़ा व असामान्य व्यवहार करने लगता है, साथ ही उसकी भोजन में अरुचि हो जाती है जिससे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। भरपूर नींद सोकर बच्चा स्वयं भी प्रसन्नचित्त रहता है, साथ ही आसपास के वातावरण को भी स्वस्थ रखता है।
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