क्रैनियोफेसियल एनामलिज:लाइलाज नहीं हैं सिर एवं चेहरे की विकृतियां

  • by @ हेल्थ स्पेक्ट्रम
  • at November 24, 2019 -
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सिर एवं चेहरे के आकार एवं स्वरूप में उत्पन्न विकृतियां (क्रैनियोफेसियल एनामलिज) न केवल हीन भावना का कारण बनती है बल्कि इन विकृतियों से मानसिक विकास भी प्रभावित हो सकता है। सामान्यतः जन्मजात तौर पर उत्पन्न होने वाली इन विकृतियों को आॅपरेशन के जरिये हमेशा के लिये दूर किया जा सकता है। नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डा.एस.के.सोगानी बताते हैं कि यह आॅपरेशन बहुत ही कारगर है और ज्यादातर बच्चे आॅपरेशन के बाद बिल्कुल सामान्य जीवन जीते हैं। लेकिन यह आॅपरेशन बच्चे के जन्म के बाद एक साल अथवा कुछ माह के भीतर ही कराया जाना चाहिये। 
किसी व्यक्ति के सिर एवं चेहरे का आकार आनुवांशिक तौर पर ही तय होता है लेकिन कई बार कुछ पैदाइशी नुख्श के कारण सिर एवं चेहरे के आकार या तो बहुत छोटे हो जाते हैं या उनमें विकृतियां आ जाती हंै। इन विकृतियों को क्रैनियोफेसियल एनामलिज कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार हर दस हजार नवजात शिशुओं में से तीन से पांच बच्चे क्रैनियोफेेसियल विकृतियों से ग्रस्त होते हैं। 
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ न्यूरो सर्जन डा. एस.के.सोगानी बताते हैं कि नवजात बच्चों के सिर एवं चेहरे के आकार को अनेक कारण प्रभावित करते हैं। इन कारणों में से सबसे प्रमुख कारण क्रैनियोफेसियल बीमारियां एवं विकृतियां हैं जो खोपड़ी एवं चेहरे के ऊपरी हिस्से से ताल्लुक रखती हैं। ये बीमारियां एवं विकृतियां कई तरह की होती हंै। इनमें से कुछ विकृतियां कपाल की अस्थियों की संधिरेखा (क्रैनियोफेसियल स्यूचर) के समय से पूर्व जुड़ जाने से पैदा होती हंै। इस स्थिति को सिनोस्टोसिस  कहा जाता है। कुछ तरह की क्रैनियोफेसियल विकृतियां कपाल की संरचना में किसी नुख्श या गड़बड़ी के कारण पैदा होती हैं। 
खोपड़ी का ऊपरी भाग झिल्लीनुमा (मेम्ब्रेनस) होता है। खोपड़ी का निचला भाग कोंड्रोक्रेनियम कहलाता है। आम तौर पर बच्चों में मस्तिष्क के विकास एवं खोपड़ी के आकार में बढ़ोतरी एक साथ होती है। सामान्य अवस्था में खोपड़ी में होने वाला विकास सभी दिशाओं में समान एवं समसमांगी होता है। खोपड़ी का विकास जन्म के समय से सात वर्षों के भीतर तेजी से होता है लेकिन कपाल संबंधी हिस्से में होने वाली ज्यादातर बढ़ोतरी जीवन के पहले ही साल में हो जाती है। इसका कारण यह है कि इसी दौरान मस्तिष्क में तीव्र विकास होता है। दो साल की उम्र तक मस्तिष्क अपने अधिकतम विकास को पूरा कर लेता है। 
डा. सोगानी के अनुसार बच्चे के जन्म के समय खोपड़ी दरअसल अनेक छोटी अस्थियों की सम्मिलित सरंचना होती है। ये अस्थियां फाइबर अथवा स्यूचर से पृथक रहती हैं। इस व्यवस्था के कारण गर्भस्थ शिशु का सिर प्रसव नाल से बाहर आता है। इसके अलावा इसी व्यवस्था के कारण जन्म के आरंभिक दिनों में मस्तिष्क के साथ - साथ खोपड़ी का विकास संभव हो पाता है। मस्तिष्क के विकास के साथ जब खोपड़ी में विकास होता है तो अस्थियों के साथ - साथ स्यूचर में भी फैलाव होता है। यह फैलाव समसामांगी होता है। लेकिन कुछ कारणों से एक या एक से अधिक स्यूचर समय से पूर्व एक दूसरे से जुड़ जाते हैं जिससे खोपड़ी को सभी दिशाओं में फैलने का मौका नहीं मिलता है। इस कारण खोपड़ी या तो फैल नहीं पाती या किसी एक दिशा में अधिक फैल जाती है। इससे खोपड़ी एवं चेहरे के आकार में विकृतियां आ जाती है। यही स्थिति क्रैनियोसिनोस्टोसिस अथवा क्रैनियोस्टेनोसिस कहलाती है। स्यूचर के समयपूर्व जुड़ जाने के कारणों का अभी तक स्पष्ट तौर पर पता नहीं चला है। 
क्रैनियोसिनोस्टोसिस कई तरह की होती है और यह इस बात पर निर्भर करती है कि खोपड़ी के कौन से स्यूचर समयपूर्व जुड़ गये हैं। कुछ बच्चों में सभी स्यूचर समयपूर्व जुड़ जाते हैं। ऐसे बच्चों का तत्काल आॅपरेशन होना जरूरी है। आॅपरेशन के जरिये सभी स्यूचर को खोल दिया जाता है और हड्डियों को सही अवस्था में रख दिया जाता है ताकि खोपड़ी का सामान्य तरीके से विकास हो सके।
कुछ तरह की क्रैनियोसिनोस्टोसिस का संबंध पैदाइशी जबकि कुछ का संबंध विकास संबंधित अन्य  समस्याओं से होता है। कुछ क्रैनियोसिनोस्टोसिस का जन्म के समय ही पता चल जाता है लेकिन कुछ का पता जन्म से कुछ महीने के बाद चलता है। चूंकि जीवन के पहले साल में ही सिर के ज्यादातर विकास होते हैं इस कारण आम तौर पर इन विकृतियों का पता इसी दौरान चलता है और इसका इलाज भी इसी दौरान होना चाहिये। 
कई बच्चों में क्रैनियोसिनोस्टोसिस इस कदर प्रकट होती है कि चिकित्सक को बच्चा देखते ही इसका पता चल जाता है। कुछ मामलों में क्रैनियोसिनोस्टोसिस का पता लगाने के लिये रेडियोग्राफिक परीक्षण की जरूरत पड़ सकती है। क्रैनियोसिनोस्टोसिस विकृतियों की जांच का कारगर एवं लोकप्रिय तरीका त्रिआयामी सी टी स्कैन है। हालांकि खोपड़ी के एक्स-रे से भी क्रैनियोसिनोस्टोसिस की स्थितियों का पता लगाया जा सकता है। लेकिन कई बार किसी रेडियोलाॅजिक परीक्षण से क्रैनियोसिनोस्टोसिस  का स्पष्ट तौर पर पता नहीं चल पाता है। ऐसी स्थिति में कुछ सप्ताह से कुछ महीने तक बच्चों के सिर एवं चेहरे के आकार पर निगरानी रखी जाती है। 
क्रैनियोफेसियल और  क्रैनियोसिनोस्टोसिस विकृतियों से ग्रस्त ज्यादातर बच्चों को सर्जरी की जरूरत पड़ती है। सर्जरी कब की जानी चाहिये और किस तरह की सर्जरी होनी चाहिये इसके बारे में न्यूरोसर्जन ही फैसला करते हैं। अक्सर इस तरह के आॅपरेशन करने वालों की टीम में न्यूरो सर्जन के अलावा विशेष तौर पर प्रशिक्षित क्रैनियोफेेसियल प्लास्टिक सर्जन भी होते हैं। ऐसे ज्यादातर आॅपरेशन जीवन के पहले साल में और कुछ आॅपरेशन तो पहले कुछ माह के भीतर होने चाहिये।
कई मां - बाप सोचते हैं कि जब बच्चा  ठीक ठाक है हैं और उसे किसी तरह की परेशानी नहीं है तो आॅपरेशन की क्या जरूरत है। क्रैनियोसिनोस्टोसिस विकृतियों का इलाज नहीं होने पर बच्चे के सिर के भीतर अतिरिक्त दबाव पैदा हो सकता है तथा मस्तिष्क को नुकसान पहुंच सकता है। यही नहीं इसका उपचार नहीं हुआ तो खोपड़ी और चेहरे में गहरी विकृतियां पैदा हो सकती है और बच्चे को ताउम्र इन विकृतियों के साथ रहना पड़ सकता है। इन विकृतियों के साथ पैदा होने वाले बच्चे को नजर संबंधी समस्यायें हो सकती है। इसके अलावा उनमें हीन भावना एवं व्यवहार तथा मनोविज्ञान संबंधी समस्यायें पैदा हो सकती है। 
इस आॅपरेशन में क्रैनियोटोमी करके स्यूचर से अस्थियों को अलग किया जाता है एवं कुछ दूरी पर रखकर जोड़ दिया जाता है। यह आॅपरेशन बहुत ही सफल है और ज्यादातर बच्चे आॅपरेशन के बाद बिल्कुल सामान्य जीवन जीते हैं। सिर में किये गये आॅपरेशन या चीरे के निशान बालों से ढक जाते हैं। बच्चों के सिर या चेहरे की सभी तरह की विकृतियां दूर हो जाती है। कुछ समय बाद इन विकृतियांे का आभास तक नहीं होता है। इस आॅपरेशन के लिये तीन से चार दिन तक अस्पताल में रहने की जरूरत होती है। सर्जरी के बाद बच्चे को एक दिन गहन चिकित्सा कक्ष में रखा जाता हैं। 
डा.एस.के.सोगानी का परिचय
डा. एस.के.सोगानी देश के प्रमुख न्यूरो एवं स्पाइन सर्जन हैं। वह इस समय नई दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल तथा अपोलो मिलीनियम अस्पताल में वरिष्ठ न्यूरो सर्जन हंै। इससे पूर्व वह नई दिल्ली के ही सरगंगा राम अस्पताल और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में न्यूरो सर्जन रह चुके हैं। उन्होंने इसके अलावा अमरीका और इंगलैंड के अस्पतालों में भी काम किया गया है। 


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