Header Ads Widget

We’re here to help you live your healthiest, happiest life.

लाइपोसक्शन से निखरेगी शारीरिक सुडौलता

छरहरा बदन हमेशा से सुंदरता का पर्याय माना जाता है। युक्ता मुखी और ऐश्वर्य राय जैसी भारतीय सुंदरियों के मिस वर्ल्ड बनने में उनकी सुंदरता के साथ-साथ उनके छरहरे बदन का मुख्य योगदान रहा है। फैशन, मॉडलिंग, ग्लैमर एवं सौंदर्य प्रतियोगिताओं के आज के इस युग में सुंदर बनने एवं दिखने के लिये महिलाओं में छरहरा बदन पाने की ललक हावी हो गयी है। कई महिलाओं को तो छरहरेपन का जन्मजात वरदान मिला होता है। लेकिन सभी भाग्यशाली नहीं होतीं। ऐसी महिलायें खास तौर पर मोटापे एवं अधिक वजन की शिकार महिलायें कुंठा से घिरी रहती हैं। वे अपने मोटापे से निजात पाने के लिये डायटिंग एवं व्यायाम जैसे उपायों को सहारा लेती हैं। इन उपायो से सामान्य किस्म के मोटापे से तो निजात पाया जा सकता है लेकिन शरीर के किसी खास भाग के मोटापे, स्थूलता एवं अधिक चर्बी को इन उपायों से दूर करना मुश्किल होता है। इन्हें दूर करने के लिये आजकल लाइपोसक्शन नामक नयी तकनीक का सहारा लिया जाता है। लाइपोसक्शन शरीर के किसी खास हिस्से से अतिरिक्त चर्बी निकालने की एक ऐसी आधुनिक तकनीक है जिसका इस्तेमाल दुनिया भर के कॉस्मेटिक सर्जन व्यापक रूप से कर रहे हैं। इस समय लाइपोसक्शन शरीर के किसी खास हिस्से से वसा हटाकर वहां की स्थूलता को स्थायी तौर पर दूर करने की स्थायी तकनीक मानी जा रही है।


नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ कॉस्मेटिक सर्जन डा.पी.के.तलवार बताते हैं कि लाइपोसक्शन तकनीक की मदद से शरीर के जिस भाग की चर्बी हटानी होती है उस भाग में छोटा सा छेद करके उसके अंदर एक खोखली नली डाल दी जाती है जिसका दूसरा सिरा एक पंप से जुड़ा होता है। यह पंप चर्बी सोख लेता है जिससे उस भाग में चर्बी कम हो जाती है। यह प्रक्रिया मरीज को बेहोश करके या उस विशेष भाग को सुन्न करके की जाती है। बहुत बड़े हिस्से से चर्बी निकालने के लिये पीठ में इंजेक्शन देकर उस क्षेत्र को सुन्न कर दिया जाता है। इसके बाद लाइपोसक्शन की तकनीक से चर्बी निकाली जाती है। नयी दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-एक (ई-34) स्थित कॉस्मेटिक सर्जरी सेंटर के निदेशक डा.पी.के.तलवार के अनुसार एक बार में ढाई से तीन लीटर तक चर्बी निकाली जा सकती है। एक बार में इससे अधिक चर्बी निकालने पर जटिलतायें उत्पन्न होने का खतरा हो सकता है। इसलिये शरीर में अधिक चर्बी होने पर लाइपोसक्शन की प्रक्रिया दो-तीन बार करनी पड़ती है। उदाहरण के तौर पर अगर पहली बार पेट की चर्बी निकाली जाती है तो कुछ समय बाद जांघ, कंधे आदि से चर्बी निकाली जाती है। इस तरह दो या तीन बार लाइपोसक्शन करने से शरीर से सारी अतिरिक्त चर्बी निकल जाती है। हालांकि लाइपोसक्शन की तकनीक से बहुत कम रक्तस्राव होता है, लेकिन इस तकनीक के तहत विकसित टुमुसेंट प्रक्रिया की मदद से चर्बी निकालने के दौरान नहीं के बराबर रक्तस्राव होता है। इस प्रक्रिया की मदद से शरीर के जिस भाग से अतिरिक्त चर्बी निकालनी होती है उस भाग को फुला दिया जाता है जिससे रक्त का बहना कम हो जाता है। इस समय इस तकनीक का इस्तेमाल व्यापक रूप से होने लगा है। आजकल कुछ कॉस्मेटिक सर्जन चर्बी निकालने के लिये पंप के बजाय सिरिंज का इस्तेमाल करने लगे हैं। इससे परिणाम बेहतर आते हैं और कम जटिलतायें उत्पन्न होती हैं। लाइपोसक्शन कराने के लिये मरीज को बारह घंटे के लिये अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है। मरीज को इस ऑपरेशन के बाद सात दिन तक एंटीबायोटिक दवा खानी होती है और तीन महीने तक इलास्टिक का विशेष कपड़ा पहनना होता है। लाइपोसक्शन के बाद अंदुरुनी सूजन आ जाती है। लेकिन इस कपड़े को पहनने से सूजन कम हो जाती है तथा त्वचा को सिकुड़ने में सुविधा होती है। डा.पी.के.तलवार के अनुसार युवक-युवतियों में लाइपोसक्शन के अच्छे परिणाम आते हैं क्योंकि युवावस्था के दौरान त्वचा में सिकुड़न की क्षमता अधिक होती है, लेकिन उम्र बढ़ने के साथ-साथ सिकुड़न की यह क्षमता कम होती जाती है। त्वचा के नहीं सिकुड़ने या कम सिकुड़ने पर वहां सिलवटें पड़ने की आशंका रहती है। इसलिये वृद्धावस्था में लाइपोसक्शन करने के बाद त्वचा में सिलवटें पड़ने की आशंका रहती है। इसलिये ऐसी अवस्था में लाइपोसक्शन के साथ-साथ त्वचा काटने की भी जरुरत पड़ जाती है। इसे टमीटक कहा जाता है। डा.तलवार का कहना है कि लाइपोसक्शन का मुख्य उद्देश्य शरीर  के वक्र को सुडौल बनाना और तराशना होता है।


 


Post a Comment

0 Comments