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मधुमेह के नियंत्रण के लिए नया पैरामीटर

मधुमेह के नियंत्रण में प्रबंधन में ग्लिसेमिक वैरिएशन की शुरुआत होने से इसके नियंत्रण में एक नयी उपलब्धि हासिल हुई है। यह इस निष्कर्ष पर आधारित है कि ग्लूकाज का अस्थिर स्तर, यहां तक कि मधुमेह रोगियों में ग्लूकोज के पूरी तरह से नियंत्रण के बाद भी हृदय रोग के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करता है


आरएसएसडीआई के अध्यक्ष डा. राजीव चावला ने ग्लिसेमिक वैरिएशन को लेकर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता बताते हुए कहा, "ग्लिसेमिक वैरिएशन के द्वारा हम मधुमेह के रोगियों में भोजन के पहले और बाद में ग्लूकोज के स्तर में गैर एकरूपता का पता लगा सकते हैं। यह अक्सर हो सकता है लेकिन ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन (एचबीए1सी) जैसे मार्करों के नियंत्रण में इसकी तरफ किसी का ध्यान नहीं जा सकता है। और यह परिवर्तन रक्त वाहिकाओं में इंजुरी पैदा करने में सक्षम है और यह रक्त वाहिकाओं में इंजुरी पैदा कर इससे संबंधित कई अंगों/ भागों विशेषकर हृदय, आंख और किडनी में डिसफंक्शन पैदा करता है"


यह परिवर्तन क्यों होता है, इस बारे में आरएसएसडीआई के सचिव डा. बी एम मक्कड़ कहते हैं, "मधुमेह एक मेटाबोलिक डिसआर्डर है जिसमें इंसुलिन और ग्लूकोज के बीच असंतुलन हो जाता है। चिकित्सकीय हस्तक्षेप के लिए जीवन शैली में परिवर्तन कर, ग्लूकोज और इंसुलिन में संतुलन पैदा कर मधुमेह का प्रबंधन किया जाता है। उपवास या अधिक स्नैक्स लेने जैसी किसी भी नयी स्थिति के पैदा होने पर यह संतुलन बिगड़ जाता है और रक्त ग्लूकोज कभी अधिक तो कभी कम हो सकता है और यह क्षति पहुंचा सकता है।


जी बी पंत अस्पताल के एंडोक्राइनोलॉजी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एस वी मधु कहते हैं, "प्राटोकॉल में चिकित्सक के द्वारा मल्टी प्वाइंट मानीटरिंग की सुविधा जुड़ जाने से रोगी को परामर्श देना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जायेगामधुमेह में आहार में परिवर्तन सिर्फ चीनी से बचना नहीं है। बल्कि नियमित अंतराल पर भोजन लेना और अधिक कैलोरी युक्त या अधिक ग्लिसेमिक इंडेक्स वाले खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना महत्वपूर्ण है।"


मधुमेह के बारे में


मधुमेह के बारे में अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह फेडरेशन के अनुसार भारत में वर्ष 2011 में मधुमेह के 62 लाख 40 हजार रोगी थे जबकि वर्ष 2010 में 50 लाख 80 हजार मधुमेह रोगी थे। वर्ष 2030 में यहां एक करोड़ मधुमेह रोगी हो जाने का अनुमान है। देश में टी2डी का प्रसार 9 प्रतिशत है लेकिन दिल्ली मे 10.9 प्रतिशत है। इसकी व्यापकता शहरी क्षेत्रों में अधिक है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में भी इसका प्रसार बढ़ रहा है। आईजीटी (इम्पेयर्ड ग्लूकोज टोलेरेन्स) का प्रसार शहरी क्षेत्रों में 9 प्रतिशत है ओर ग्रामीण क्षेत्रों में 7.8 प्रतिशत है। अनुमान लगाया गया है कि आईजीटी के 35 प्रतिशत रोगी मधुमेह रोगी में तब्दील हो जायेंगे जिससे इस रोग का बोझ और बढ़ेगाइस बोझ को कम करने के लिए, मधुमेह और इससे जुड़ी जटिलताओं की रोकथाम या इलाज के लिए नये दिशा निर्देश अनिवार्य हैं.


 


 


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