मधुमेह में ‘फुट अटैक’ से रहें सावधान

मधुमेह की जल्द पहचान करने और इलाज कराने पर हृदय रोग, स्ट्रोक और किडनी रोग जैसी इससे संबंधित जटिलताओं को टाला जा सकता है और यहां तक कि रोका भी जा सकता है जिससे मरीज अधिक गुणवत्ता पूर्ण जीवन जी सकता है। मधुमेह को नियंत्रित नहीं रखने पर यह नव्र्स को नुकसान पहुंचा सकता है। पैरों या पांवों में नव्र्स के क्षतिग्रस्त होने पर पैर में गर्मी, ठंडा या दर्द की संवेदना में कमी आ सकती है। ऐसी स्थिति में, किसी रोगी के पैर में खरोंच आने या कट जाने पर या घाव हो जाने पर वह इसे महसूस नहीं कर सकता है और उस पर उसका ध्यान नहीं जा सकता है। इससे भी बदतर तो यह हो सकता है वह संक्रमित भी हो जा सकता है। इसके अलावा, मधुमेह रोगियों में, उनके पैरों की मांसपेशियां ठीक से काम नहीं कर सकती हैं और उन मांसपेषियों को बनाने वाली नव्र्स क्षतिग्रस्त हो जा सकती हैं। 


यह पैरों के अलाइनमेंट को प्रभावित करती है और विभिन्न तरह के दबाव पैदा करती है। पैरों के कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक दबाव के कारण अल्सर हो सकता है। इसलिए मधुमेह रोगियों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी चाहिए क्योंकि उनमें 'फुट अटैक' का खतरा अधिक होता है। 



''फुट अटैक में पैरों में चोट लगने पर खराब रक्त परिसंचरण के कारण रोगी इसे कम महसूस कर पाता है। फुट अटैक की षुरुआत आम तौर पर एक छोटी फंुसी से होती है जो फुट अल्सर में तब्दील हो जाती है। लेकिन रोगी के पैरों में संवेदना खत्म हो जाने के कारण वह इसे महसूस नहीं कर पाता है जिसके कारण उस पर उसका ध्यान नहीं जाता है।''
मधुमेह के कारण धमनियों में कोलेस्ट्रॉल जमा होने लगता है जिसके कारण धमनियों में रुकावट हो जाती है। इसकी परिणति पांव या पैर की गैंगरीन के रूप में हो सकती है और पैर काटने की नौबत आ सकती है।


मधुमेह के रोगियों में, जूता काटने या कट आने जैसी छोटी इंजुरी होने पर, उसका इलाज नहीं कराने पर गैंगरीन हो सकता है और रोगी का पैर काटना पड़ सकता है।


निवारक उपाय,  जो अधिक खतरे वाले मधुमेह रोगियों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकते हैं:    
- हर रोज अपने पैरों की जांच करें - पैर की उंगलियों के बीच और एड़ी के आस-पास के क्षेत्रों में घावों, दरारें, सूखी त्वचा, पैर के नाखूनों का असमान्य रूप से मांसपेषियों में बढ़ने, छाले और त्वचा के रंग में परिवर्तन आने का पता लगाने के लिए समय- समय पर इन क्षेत्रों की जांच करें।
 - कॉर्न और कैलस की जांच करें क्योंकि वे दबाव पैदा कर सकते हैं और अल्सर का कारण बन सकते हैं। यदि आपको काॅर्न होता है, तो इसे खुद न तो ट्रिम करें न काटें। काॅर्न पैड या प्यूमिक स्टोन का इस्तेमाल न करें क्योंकि इससे यह अल्सर में विकसित हो सकता है।
-  हर दिन अपने पैरों को गर्म पानी और सौम्य साबुन से साफ करें और उसके बाद हल्के रंग के तौलिये से अपने पैरों को, विषेशकर पैरों की अंगुलियों के बीच की जगह को पोंछकर सुखा लें। पोंछने के बाद तौलिये को ध्यान से देखें कि उसमें खून या मवाद तो नहीं लगा है।
-  पैरों को ड्राई होने या दरार पड़ने से रोकने के लिए पैरों (पैर की उंगलियों में नहीं) पर क्रीम लगाएं। मधुमेह रोगियों को यूरिया युक्त क्रीम लगाने की सलाह दी जाती है।
-  अपने नाखूनों को बहुत छोटा नहीं काटंे। किनारों को चिकना करने के लिए नेल फाइल का उपयोग करें।
-  रोजाना मौजे बदलें और स्वच्छ, मुलायम और अच्छी तरह से फिट रहने वाले मौजे पहनें। गद्देदार मोजे को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
-  घर के अंदर या बाहर नंगे पैर न चलें। इससे पैरों के नीचे अत्यधिक दबाव पड़ता है। अच्छी तरह से फिट और गद्देदार जूते पहनकर इन समस्याओं से बचा जा सकता है।


मधुमेह रोगियों में, निवारक देखभाल महत्वपूर्ण है। रक्त शर्करा के स्तर को स्थिर रखने से काफी मदद मिलती है, क्योंकि इससे मधुमेह संबंधी जटिलताओं की संभावना कम हो जाती है। हालांकि, अगर किसी को फुट अल्सर हो जाता है, तो उसे तत्काल डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए क्योंकि इलाज में जितनी देरी होगी, संक्रमण की संभावना उतनी ही बढ़ जाएगी।


डाॅ. राजीव परख मेदांता - द मेडिसिटी के पेरिफेरल वैस्कुलर एंड एंडोवस्कुलर साइंसेस के प्रमुख हैं।