भारतीय फिल्म उद्योग के नसीरूद्दीन शाह भारतीय फिल्म उद्योग के सबसे प्रतिभाशाली कलाकारों में से एक हैं। मुख्यधारा की व्यावसायिक सिनेमा से लेकर कला फिल्मों और नाटकों तक उन्होंने अपने अभिनय की बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया है लेकिन बॉलीवुड से तीन दशक तक जुड़े रहने के बाद आज फिल्म उद्योग की नयी प्रवृतियों एवं घटनाओं से वह बुरी तरह से खिन्न हैं। वह इस समय निर्देशक के रूप में अपनी पहली फिल्म - ''यूं होता तो क्या होता'' के रिलीज की तैयारी कर रहे हैं।
इस फिल्म में परेश रावल, कोंकणा सेन, इरफान खान, जिम्मी शेरगिल, रत्ना पाठक, सुहासिनी मुले जैसे कलाकार अपने अभिनय का जौहर दिखायेंगे। इस फिल्म का एक महत्वपूर्ण आकर्षण यह है कि यह फिल्म हॉलीवुड स्टाइल में बनायी गयी है।
आप बेहतरीन अदाकार के रूप में जाने जाते हैं। लेकिन आपने अब आप अपने को एक निर्देशक की भूमिका में उतारने की तैयारी कर ली है। ऐसा क्यों?
मैं हमेशा से निर्देशन करने की जरूरत महसूस करता रहा हूं। नब्बे के दशक के आरंभिक वर्षों में जब मैं फिल्मों में अभिनय कर रहा था तब मैं कई फिल्मों से बहुत अधिक असंतुष्ट रहता था, लेकिन तब मेरे पास अभिनय करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था। मुझे उस समय अपने को एक अभिनेता के रूप में स्थापित करने के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा था। मैं इस संघर्ष में काफी हद तक सफल भी रहा। लेकिन उन दिनों मैं जिन फिल्मों में अभिनय करता था, उन फिल्मों के बारे में सोचता था कि अगर मैं इसे निर्देशित करता तो मैं क्या करता। मैं आज भी महसूस करता हूं कि मैं एक लोकप्रिय, व्यावसायिक एवं मसाला फिल्म बनाने में पूरी तरह से अक्षम हूं। इसका एक बड़ा कारण तो यही है कि मैं ऐसी फिल्मों को पसंद नहीं करता हूं। मैंने श्याम बेनेगल, शेखर कपूर, गुलजार भाई और साई परांजपे जैसे लोगों के साथ काम करते हुये कई चीजें सीखी।
आप स्टार सिस्टम के विरुद्ध रहे हैं। आज बॉलीवुड में जिस तरह से स्टार सिस्टम का बोलवाला है उसके बारे में आप क्या कहेंगे?
मुझे लगता है कि आज बॉलीवुड की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। हमें यह भम्र है कि हमारी फिल्में तकनीकी तौर पर बेहतर हो रही हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बॉलीवुड फिल्मों को महत्व दिया जा रहा है। अगर बॉलीवुड में दमदार और अच्छी फिल्में बनाने की दिशा में पहल नहीं होती है, जिसके बारे में मुझे संदेह है, तो मुझे लगता है कि कुछ वर्षोंमें बॉलीवुड का आकर्षण समाप्त हो जायेगा। आज बॉलीवुड के सबसे बड़े और सबसे सम्मानित माने जाने वाले फिल्मकार बेसिर-पैर की फिल्में बनाने में जुटे हुये हैं। मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है। पहले ये सोचते हैं कि उनकी कोई फिल्म में कौन से अभिनेता होंगे और इन अभिनेताओं से कितने करोड़ रुपये की कमाई होगी। इसके बाद ये लोग पटकथा के बारे में सोचते हैं। अगर किसी में हिम्मत हो तो मुझसे इस विषय पर बहस कर सकता है।
आपने फिल्मों में अभिनय की शुरुआत करीब 31 साल पहले की थी। अब आप निर्देशन की शुरुआत कर रहे हैं। दोनों में से कौन सा पक्ष आपको सबसे ज्यादा आकर्षक लगा?
फिल्मों में अभिनय अत्यंत चुनौतीपूर्ण कार्य था। लेकिन आज जब चुनौतियां खत्म हो गयी हैं तब अभिनय करना बोरियत भरा काम लगने लगा है। करीब 20-25 साल अभिनय करते-करते मुझे ऐसा लगने लगा कि यह दुनिया का सबसे बोरियत भरा काम है। हालांकि यह ऐसा काम है जिसमें पैसे बहुत हैं। लेकिन मैं भविष्य में इससे भी अधिक सार्थक काम करना चाहता था। इसलिये मैंने निर्देशन का काम शुरू किया। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि अभिनय से तौबा कर लूंगा। अगर मुझे अच्छी फिल्में मिली तो अभिनय जरूर करूंगा। इस साल मैंने अभिनय का कोई काम नहीं लिया है। मैं थोड़े समय के लिये ब्रेक लेना चाहता हूं और सोचना चाहता हूं कि मैंने क्या बनाया। मैं इस फिल्म के रिलीज होने के बाद सोचूंगा कि क्या मैं दूसरी फिल्म बना सकता हूं या नहीं। इस बारे में मेरा निर्णय बॉक्स आफिस पर इस फिल्म का क्या हश्र होगा या समीक्षकों की क्या प्रतिक्रिया होगी, इस बात पर निर्भर नहीं करेगा। मैं अपने काम का मूल्यांकन खुद करूगा।
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