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ताकि संतान सुख से वंचित न रहे कोई

संतान प्राप्ति की इच्छा हर दम्पति की होती है। लेकिन कई दम्पतियों की यह इच्छा पूरी नहीं हो पाती। आम तौर पर अधिकतर महिलाएं शादी के बाद डेढ़ साल में गर्भ धारण कर लेती हैं। लेकिन इस अवधि के भीतर गर्भधारण संभव नहीं होने की स्थिति इनफर्टिलिटी (संतान हीनता) कहलाती है। इसके लिए पति और पत्नी में से कोई एक या दोनों जिम्मेदार हो सकते हैं। संतानहीनता के 40 फीसदी मामलों में पुरुष, 40 फीसदी मामलों में महिला और 20 फीसदी मामलों में दोनों जिम्मेदार होते हैं। संतानहीनता, इंफर्टिलिटी और बांझपन से जुड़ी समस्याओं के बारे में सुप्रसिद्ध प्रजनन विषेशज्ञ डा. सोनिया मलिक के साथ बात की। डा. सोनिया मलिक नयी दिल्ली के होली एंजिल्स हास्पीटल स्थित प्रजनन केन्द्र साउथेंड रोटंडा की निदेशक हैं। डा. मलिक अमेरिकन सोसायटी फाॅर रिप्रोडक्शन मेडिसीन से संबद्ध हैं। यहां पेश है बातचीत के मुख्य अंश।



पुरुषों में संतानहीनता के आम तौर पर क्या-क्या कारण होते हैं?
पुरुषों तथा महिलाओं में इनफर्टिलिटी के कई कारण हो सकते हैं। पुरुषों में चेचक, मम्प्स, सिफलिस, गनोरिया या अन्य संक्रमण, मधुमेह, धूम्रपान, मद्यपान, शीघ्रपतन और अतिसहवास बांझपन का कारण हो सकता है। इनके अलावा वीर्य में शुक्राणुओं का कम होना, नहीं होना या कमजोर शुक्राणुओं का होना, अंडग्रंथि (टेस्टिस) तथा शिश्न का अविकसित होना, शुक्रवाहिनी (वास डिफेरेन्स) में अवरोध या इसका अनुपस्थित होना भी इनफर्टिलिटी का कारण बन सकता है। 
महिलाओं में इनफर्टिलिटी क्यों होती है? 
महिलाओं में इनफर्टिलिटी का कारण अंडोत्सर्ग (ओवुलेशन) का नहीं होना या ठीक से नहीं होना, फैलोपियन ट्यूब का बंद होना, जननांगों में किसी तरह का जीवाणु संक्रमण या फायब्राॅयड का होना, जननांगों का अविकसित होना, स्थूलता, पिट्युटरी ग्रंथि, थाईराॅयड ग्रंथि तथा ओवरी का कम क्रियाशील होना, गर्भाशय का छोटा होना अथवा गर्भाशय में ट्यूबरकुलर इंडोमेट्रिटिस होना हो सकता है। इनके अलावा मधुमेह, एनीमिया, अधिक सहवास और  धूम्रपान जैसे कारण भी गर्भधारण में मुश्किल पैदा कर सकते हैं। महिला की उम्र 40 वर्ष से अधिक होने पर भी गर्भधारण में दिक्कत होती है। महिलाओं में कई तरह के जेनेटिक डिसआर्डर के कारण भी बच्चे पैदा नहीं होते हैं। कुछ लड़कियों में जन्म से ही ओवरी नहीं होती है तो कुछ में यूटेरस ही नहीं होता। कुछ लड़कियों में गर्भाशय या अंडाशय की समस्या होती है जिसके कारण उनमें अंडा ही नहीं बनता है। आजकल इनफर्टिलिटी का शिकार 75 फीसदी महिलाओं में हार्मोन की समस्या होती है। इसका मुख्य कारण मोटापा और व्यायाम नहीं करना है।
क्या बार-बार गर्भपात कराना भी इनफर्टिलिटी का कारण बन सकता है? 
आजकल कई महिलाओं को एक बच्चा तो हो जाता है लेकिन दूसरे बच्चे में समस्या आती है। इसका मुख्य कारण बार-बार गर्भपात कराना है। इससे उनका प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर हो जाता है या यूटेरस में खराबी आ जाती है जिससे इनफर्टिलिटी हो जाती है। इसके अलावा 5-6 साल तक लगातार अधिक पोटेंसी की गर्भनिरोधक गोलियां लेने से भी प्रजनन तंत्र में खराबी आ जाती है और ओवुलेशन नहीं होता। 
पुरुषों में इनफर्टिलिटी का पता कैसे लगाया जाता है? 
इनफर्टिलिटी के उपचार के लिए इसके कारण का पता लगाना जरूरी है। इसके लिए पति-पत्नी दोनों की पूरी जांच की जाती है। पुरुषों में इनफर्टिलिटी की जांच के लिए शुक्राणु और हार्मोन की जांच के अलावा रक्त शर्करा, वी.डी.आर.एल., ब्लड ग्रूप, मूत्र जांच आदि किये जाते हैं। कुछ रोगियों में टेस्टीकुलर बायोप्सी भी की जाती है। इसके तहत वृषण (टेस्टिस) के ऊतक की बायोप्सी लेकर शुक्राणु में खराबी और शुक्राणु संवहन का पता लगाया जाता है। कुछ रोगियों में एंटीबाॅडी स्वयं शुक्राणुओं को मारने लगती है। इसका पता लगाने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र (इम्यून सिस्टम) की जांच भी की जाती है।
महिलाओं में इनफर्टिलिटी का पता कैसे लगाया जाता है? 
लगभग 90 फीसदी महिलाएं बिना किसी गर्भनिरोधक के प्रयोग के 18 महीने  तक शारीरिक संबंध बनाने पर गर्भधारण कर लेती हैं। अगर 18 से 25 साल की महिलाएं दो वर्ष के अंदर, 25 से 35 वर्ष की महिलाएं एक वर्ष के अंदर तथा 35 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाएं 6 माह के अंदर गर्भ धारण नहीं करे तो उसे इनफर्टिलिटी के परीक्षण कराने चाहिए। महिलाओं में इनफर्टिलिटी का पता लगाने के लिए आम तौर पर वी.डी.आर.एल., ब्लड ग्रूप, रक्त शर्करा जैसे रक्त की जांच, मूत्र की जांच, छाती का एक्स-रे तथा अल्ट्रासाउंड किया जाता है। इसके अलावा योनि में संक्रमण का पता लगाने के लिए योनि स्राव के परीक्षण भी किये जाते हैं। गर्भाशय की अंतः कला की स्थिति का पता लगाने के लिए एंडोमिटीयल बायोप्सी भी की जाती है। आधारी तापक्रम से डिम्बोत्सर्ग का पता लगाते हैं। इसके अलावा प्रतिरक्षा तंत्र की जांच तथा हार्मोन की जांच भी की जा सकती है। हार्मोन की जांच से डिम्बोत्सर्ग (ओवुलेशन) तथा जननांगों की विकृति आदि का पता लगाया जाता है। कुछ रोगियों में ट्यूब पेटेन्सी टेस्ट तथा हिस्टोसेलफिनजोग्राफी के द्वारा ट्यूब में अवरोध तथा गर्भाशय गुहा की जांच करते हैं। इसके अलावा लैप्रोस्कोपी और हिस्टोस्कोपी जांच भी की जा सकती है। इसके तहत दूरबीन द्वारा गर्भाशय, फैलोपियन ट्यूब तथा ओवरी की जांच की जाती है और इससे डिम्बवाहिनी (फैलोपियन ट्यब) के अवरोध को भी दूर किया जा सकता है। 


इंफर्टिलिटी को दूर करने के क्या-क्या आधुनिक उपाय हैं? 
मौजूदा समय में कृत्रिम वीर्य संचलन (आर्टिफिशियल इनसेमीनेशन), इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आई वी एफ) तथा भ्रूण प्रत्यारोपण, अंतः कोशिका द्रव्य शुक्राणु इंजेक्शन (आई सी एस आई) जैसी तकनीकों की बदौलत निःसंतान दम्पति संतान का सुख प्राप्त कर सकते हैं। इन तकनीकों की सहायता से न सिर्फ प्रजनन दोष वाली महिलाएं बल्कि अधिक उम्र की महिलाएं भी मां बनने का सौभाग्य प्राप्त कर सकती हैं।
कृत्रिम वीर्य संचलन (आर्टिफिशियल इनसेमीनेशन) के तहत पति के वीर्य को साफ करके सिरिंज केनुला द्वारा पत्नी के जननमार्ग तक पहुंचा दिया जाता है। जब किसी पुरुष के वीर्य में शुक्राणु की अत्यधिक कमी हो, कोई आनुवांशिक रोग हो, शीघ्रपतन हो, कोई जननांग विकार हो या महिला में गर्भाशय ग्रीवा म्यूकस में कोई खराबी हो तो इस तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें किसी अन्य पुरुष के वीर्य का भी उपयोग किया जा सकता है।
इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आई वी एफ) तथा भ्रूण प्रत्यारोपण की तकनीक का इस्तेमाल महिला की डिम्बवाहिनी (फैलोपियन ट्यूब) के क्षतिग्रस्त होने, बंद होने या न होने पर किया जाता है। इसे परखनली शिशु विधि (टेस्ट ट्यूब बेबी) भी कहते हैं। इसके तहत महिला के अंडाणु को शरीर से बाहर निकालकर एक परखनली में उसके पति के शुक्राणु से निषेचित कराकर निषेचित अंड को पुनः गर्भाशय में पहुंचा दिया जाता है। जब किसी महिला के अंडाणु में कोई दोष होता है तब किसी अन्य महिला के स्वस्थ अंडों को पति के शुक्राणु से निषेचित कराकर उसे बंध्या महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। यह गर्भ गर्भाशय में सामान्य रूप से विकसित होता है। 
अंतः कोशिका द्रव्य शुक्राणु इंजेक्शन (आई सी एस आई) नामक तकनीक के तहत शुक्राणु को सीधा अंतः कोशिका द्रव्य में प्रवेश करा दिया जाता है। जब किसी पुरुष में शुक्राणु की मात्रा बहुत कम होती है तब इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है। 
क्या इन तकनीकों के इस्तेमाल में किसी प्रकार की गलती होने की भी संभावना होती है?
किसी बड़े फ़र्टिलिटी क्लिनिक में कर्मचारियों को प्रतिदिन अनेक दंपतियों के लिए सही शुक्राणु और अंडाणु का मिलान कराना पड़ता है। ऐसा करने के बाद उन्हें यह भी सुनिश्चित करना पड़ता है कि इस तरह विकसित भ्रूण सही महिला में प्रतिरोपित हो। कई बार भ्रूण को भविष्य में प्रयोग के लिए जमा कर रख लिया जाता है। वक्त आने पर क्लिनिक के कर्मचारी की जिम्मेदारी महिला के गर्भाशय में उचित भ्रूण डालने की होती है। लेकिन ऐसा करते हुए कोई जेनेटिक परीक्षण नहीं किया जाता, इसलिए इसमें गलती होने की भी थोड़ी संभावना हो सकती है, लेकिन यह संभावना नगण्य होती है। 


 


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