कोविड - 19 के दौरान फेफड़े के कैंसर

विनोद कुमार‚ हेल्थ रिपोर्टर

डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया भर में फेफड़ों के कैंसर के कारण हर साल लगभग 20 लाख 9 हजार लोगों की मौत हो जाती है। भारत में स्त्रियों और पुरूषों में कैंसर के सभी नए मामलों में से 6.9 प्रतिशत मामले फेफड़ों के कैंसर के होते हैं जबकि कैंसर के कारण होने वाली सभी मौतों में से 9.3 प्रतिशत मौतें फेफड़ों के कैंसर के कारण होती है।



ग्लोबोकान के अनुसार, भारत में हर साल फेफड़ों के कैंसर के लगभग 70,000 नए मामले सामने आते हैं और लगभग 62,000 मौतें होती हैं।

भारत में फेफड़ों के कैंसर के मरीजों की अधिक मृत्यु दर होने का कारण फेफड़ों के कैंसर के लिए सामुदायिक आधारित समुचित एवं कारगर स्क्रीनिंग कार्यक्रम की कमी है। 

भारत में पहले से ही सामुदायिक स्क्रीनिंग कार्यक्रमों की स्थिति बदतर है और कोविड-19 की महामारी के कारण इसकी स्थिति और भी बदतर हो गई है। कोरोना के भय के कारण जिन लोगों में फेफड़े के कैंसर के संभावित लक्षण हैं वे जांच एवं इलाज के लिए अस्पताल आने से कतरा रहे हैं और इसके कारण उनकी सही समय पर जांच नहीं हो रही है और जिन लोगों में हाल में फेफड़े के कैंसर का पता चला है उनके इलाज को जारी रखने में समस्या आ रही है और जिनका पहले से इलाज चल रहा है वे अपनी कीमोथिरेपी या अपनी सर्जरी टाल रहे हैं। 

यह स्थिति इस कारण से भी जटिल हो रही है क्योंकि फेफड़े के कैंसर एवं कोविड - 19 के लक्षण एक दूसरे से मिलते- जुलते हैं। इन सब स्थितियों के कारण आरंभिक अवस्था वाला इलाज योग्य कैंसर धीरे-धीरे बढ़कर गंभीर अवस्था में प्रवेश कर जाएगा और जिस कैंसर का आज इलाज हो सकता है, समय पर इलाज नहीं होने के कारण बाद में वह लाइलाज बन जाएगा।

डा. सुरेंद्र कुमार डबास, वरिष्ठ निदेशक और विभागाध्यक्ष,सर्जिकल ओंकोलाजी और रोबोटिक सर्जरी बताते हैं कि फेफड़ों के कैंसर की मृत्यु दर कोविड -19 की तुलना में अधिक है, इसलिए डाक्टरों और मरीजों को फेफड़े के कैंसर के इलाज में देरी नहीं करनी चाहिए और चाहे किसी भी तरह का कैंसर हो उसका उपचार समय पर होना चाहिए। कोविड-19 की महामारी अभी शीघ्र जाने वाली नहीं है और इसलिए जीवन को पहले की तरह जारी रखा जाना चाहिए तथा कैंसर के इलाज में किसी तरह की कोताही नहीं बरती जानी चाहिए।