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औषधि लेपित स्टेंट से हृदय के आपरेशन की घटती जरूरत

अनेक अध्ययनों में औषधि लेपित स्टेंट के अधिक कारगर एवं सुरक्षित पाये जाने के बाद दुनिया के विभिन्न देशों में बंद रक्त धमनियों को खोलने के लिये एंजियोप्लास्टी के दौरान औषधि लेपित स्टेंट का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल होने लगा है। औषधि लेपित स्टेंट को साइफर अथवा टेक्सस भी कहा जाता है।
नयी दिल्ली, नौएडा, मेरठ, आगरा, फरीदाबाद आदि में फैले मेट्रो ग्रूप आफ हास्पिटल्स समूह के चेयरमैन तथा नौएडा स्थित मेट्रो हास्पीटल्स एंड हार्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक सुप्रसिद्ध हृदय रोग चिकित्सक पद्मभूषण डा. पुरुशोत्तम लाल बताते हैं कि स्टेंट धातु की जालीनुमा ट्यूब होती है जिसे एंजियोप्लास्टी की मदद से हृदय की बंद धमनियों को खोलने के बाद वहीं पर हमेशा के लिये छोड़ दिया जाता है ताकि धमनियां दोबारा नहीं सिकुड़े। सामान्य स्टेंट से औषधि लेपित स्टेंट इस अर्थ में भिन्न है कि उस पर रैपामाइसिन (सिरोलिमस) अथवा टेक्सोल नामक औषधि की परत चढ़ी होती है। स्टेंट से धीरे-धीरे यह औषधि निकलती रहती है और वहां नये ऊतकों को बनने या काॅलेस्ट्राल जमा नहीं होने देती है। अध्ययनों से पाया गया है कि नये स्टेंट से हृदय की रक्त धमनियों के दोबारा बंद होने (रिस्टेनोसिस) की आशंका करीब दो-तिहाई घट जाती है। साइफर स्टेंट स्टेनलेस स्टील का जालीनुमा यंत्र होता है जिसमें प्रति वर्ग सेंटीमीटर में 140 माइक्रोग्राम रैपामाइसीन होती है। टेक्सस स्टेंट पर टेक्सोल दवा की परत होती है। स्टेंट में लगी दवा कोशिकाओं में वृद्धि को रोकती है।
डा. बी. सी. राय राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित डा. लाल बताते हैं कि औषधि लेपित स्टेंट एक से डेढ़ माह तक नियंत्रित तरीके से धीमी गति से रैपामाइसिन अथवा टेक्सोल छोड़ता है और वहां नयी कोशिकाओं को बनने नहीं देता है। इस तरह से रिस्टेनोसिस की आशंका घटती है। यह दवाई कोशिकाओं की अतिरिक्त वृद्धि को भी रोकती है और कोशिकाओं को नष्ट नहीं करती है। भारत में औषधि लेपित स्टेंट के दाम में काफी गिरावट होने की संभावना है।
हृदय रोगों के आपरेशन बगैर उपचार की अनेक तकनीकों को विकसित करने वाले डा. लाल के अनुसार इस समय कई तरह के स्टेंट उपलब्ध हैं। इसे एक छोटे से गुब्बारे पर रख कर धमनी में संकरे या जमाव के स्थान तक पहुंचा कर फुला दिया जाता है। अमरीका में बंद रक्त धमनियों को खोलने के लिये हर साल आठ लाख एंजियोप्लास्टी होती है। अनुमानतः 15 से 30 प्रतिशत मरीजों में एंजियोप्लास्टी से खोली गयी धमनियां दोबारा बंद हो जाती हैं। इस स्थिति को रिस्टेनोसिस कहा जाता है। इसके एक साल बाद मरीज की जान बचाने के लिये एंजियोप्लास्टी या बाईपास सर्जरी करने की जरूरत पड़ जाती है। लेकिन स्टेंट और खास तौर पर औषधि लेपित स्टेंट के इस्तेमाल की बदौलत धमनियों में दोबारा अवरोध की आशंका नहीं के बराबर रह गयी है।
सबसे अधिक एंजियोप्लास्टी एवं स्टेंटिंग करने का श्रेय हासिल करने के लिये इंडियन मेडिकल एसोसिएषन की ओर से सम्मानित डा. लाल के अनुसार जिन मरीजों को साइरोलिमस अथवा स्टील से एलर्जी है उनमें साइफर या टेक्सस स्टेंट प्रत्यारोपित नहीं किये जाने चाहिये। इसके अलावा उन लोगों में भी औषधि लेपित स्टेंट के इस्तेमाल में सावधानी बरती जानी चाहिये जिन्हें हाल में दिल की सर्जरी हुयी है अथवा जो महिलाएं आने वाले दिनों में गर्भधारण करने वाली हैं और जो अपने शिशु को स्तनपान करा रही हैं।
हृदय रोगों के आपरेशन बगैर उपचार की अनेक तकनीकों को विकसित करने वाले डा. लाल एंजियोप्लास्टी, स्टेंट एवं रैपामाइसिन लेपित स्टेंट को महत्वपूर्ण चिकित्सकीय उपलब्धियां बताते हुये कहते हैं कि इन तकनीकों के आपरेशन की तुलना में कई फायदे हैं। सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि इनमें चीर-फाड़ की जरूरत नहीं पड़ती है। मरीज को एनेस्थिसिया आदि देकर बेहोश नहीं करना पड़ता तथा आपरेशन की तुलना में इसमें बहुत कम समय (आधा से एक घंटा) लगता है। इस कारण मरीज जल्दी स्वास्थ्य लाभ करता है। मरीज को संक्रमण होने तथा मौत होने की आशंका आपरेशन की तुलना में बहुत कम होती है। मरीज को दूसरे ही दिन अस्पताल से छुट्टी दी जा सकती है। इस समय केवल बैलून अथवा एंजियोप्लास्टी के जरिये 75 प्रतिशत रोगियों का इलाज हो सकता है जबकि एंजियोप्लास्टी के साथ स्टेंट का प्रयोग करने पर 90 प्रतिशत रोगियों का इलाज संभव हो गया है।
डा. पुरूषोत्तम लाल के अनुसार मधुमेह के मरीजों या उन मरीजों को जिनकी एक से अधिक धमनियों में रुकावट है या जिनकी धमनी में जमाव का क्षेत्र बहुत लंबा है उनका इलाज भी औषधि लेपित स्टेंट से हो सकता है जबकि पहले इनकी जान बचाने के लिये हृदय की सर्जरी करनी पड़ती थी। भारतीय लोगों की धमनियां पश्चिमी देशों के लोगों की तुलना में संकरी होती हैं और यहां के लोगों में मधुमेह का प्रकोप भी अधिक होता है जिसके कारण यहां के लोगों की धमनियों में थोड़ा सा भी अवरोध होने पर धमनियां ब्लाॅक हो जाती हैं तथा धमनियों को खोलने के बाद भी उनमें दोबारा ब्लाॅक होने की आशंका अधिक होती है। ऐसे में औषधि लेपित स्टेंट भारतीयों के लिये विशेष तौर पर लाभदायक साबित हो सकता है। 


 


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