बच्चे का विकास प्राकृतिक प्रक्रिया है। इसमें किसी वजह से रुकावट या अवरोध होने पर बौनापन हो सकता है। बौनेपन से बच्चे का शारीरिक विकास ही नहीं, मानसिक विकास (आई.क्यू.) भी कम हो जाता है। सूखा रोग, एनीमिया, पेट की बीमारियाँ, रिकेट्स, थायराइड या ग्रोथ हार्मोन की कमी, क्रोनिक बीमारियाँ जैसे तपेदिक (टी.बी.) आदि इसके प्रमुख कारण हैं। बच्चे का वजन घटना, पेट निकल आना, नितंब सूखना, चेहरा पिचक जाना सूखा रोग के मुख्य लक्षण हैं। बच्चों में कुपोषण का कारण उनकी खुराक में आवश्यक मात्रा में प्रोटीन, विटामिन, आयरन, मिनरल्स एवं कैलोरी का अभाव होना है, जिसका कारण सिर्फ गरीबी ही नहीं, लोगों में पोषक तत्वों वाले भोजन की जानकारी का अभाव होना भी है। जिसके चलते मध्यम और उच्च वर्गीय लोेगों में फास्ट फूड्स जैसे—बर्गर, पिज्जा, कोल्ड ड्रिंक्स आदि से पेट तो भरता है, लेकिन पर्याप्त मात्रा में शरीर का विकास करने वाले पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं। कई बार कुपोषण शरीर में मौजूद किसी बीमारी की वजह से भी हो सकता है। बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए दाल, दूध या उसकी बनी चीजें, हरी सब्जियाँ, फल, अंडा, चिकन, मछली (अगर माँसाहारी हैं) इत्यादि उसकी उम्र और वजन के हिसाब से देने चाहिए तथा नियमित अंतराल पर बच्चे के विकास का परीक्षण किसी विशेषज्ञ से कराते रहना चाहिए।
चेहरा पीला पड़ना, जल्दी-जल्दी बुखार या कोई संक्रमण (जैसे—न्यूमोनिया, दस्त इत्यादि) का होना, जल्दी थक जाना, पढ़ाई में ध्यान न लगना, चिड़चिड़ाहट का बढ़ना, याददाश्त का कमजोर होना, लंबाई नहीं बढ़ना (बौनापन) एनीमिया के लक्षण हैं। एनीमिया का प्रमुख कारण बच्चे की खुराक में आयरन, विटामिन बी काॅम्प्लेक्स और प्रोटीन का उचित मात्रा में न होना है। इसे पोषण संबंधी (न्यूट्रिशनल) एनीमिया कहते हैं। एनीमिया होने पर बच्चा न केवल उम्र के हिसाब से बौना दिखता है, अपितु उसका मानसिक विकास भी कम हो जाता है। बच्चे के पेट में बार-बार दर्द, भूख न लगना, टट्टी में बदबू आना, जियारडिया, अमीबा या जीवाणु संक्रमण जैसी पेट की बीमारियों के लक्षण हैं। इस तरह की बीमारियाँ खाने-पीने की चीजों में उचित सफाई न रखने से हो सकती हैं। इसकी वजह से भी बच्चे का विकास रूक सकता है। इसकेे लक्षण रूकने पर तुरन्त उचित जाँच-पड़ताल और इलाज जरूरी है ताकि बच्चे को बौनापन से बचाया जा सके। हड्डियों के जोड़ों में विकृति आना, खड़े होने में कठिनाई महसूस होना, हड्डियों का कमजोर होना और हाथ-पैर का विकास रुक जाना रिकेट्स के लक्षण हैं। यह विटामिन 'डी' की कमी की वजह से होता है। इसका तुरन्त इलाज कराना जरूरी है अन्यथा बच्चे का विकास रूक सकता है।
यदि कोई बच्चा अपनी उम्र के हिसाब से नहीं बढ़ रहा है और उसको हल्का बुखार रहता है या अक्सर खाँसी-जुकाम रहता है और घर या आसपास किसी को तपेदिक की बीमारी है तो बच्चे को टी.बी. हो सकती है। बौनेपन के शिकार पाँच से दस प्रतिशत बच्चों में तपेदिक के लक्षण पाए जा सकते हैं। लोेगों के मन में इस बीमारी को लेकर गलत धारणा है, जबकि यह पूर्णतः ठीक होने वाली बीमारी है। अतः इस तरह के लक्षण होने पर बच्चे की उचित जाँच और इलाज की आवश्यकता है। इसी तरह से अन्य बीमारियाँ जैसे—न्यूमोनिया, दिल की बीमारी, लीवर या गुर्दे की बीमारी में भी बौनापन हो सकता है। इसके अलावा कुछ बच्चों में बौनापन हार्मोन्स की कमी की वजह से भी हो सकता है। इनमें प्रमुख हैं—थायरायड हार्मोन और ग्रोथ हार्मोन। बच्चों में इनकी कमी से होने वाले लक्षण कुपोषण, एनीमिया इत्यादि से होने वाले लक्षणों से मिलते-जुलते हैं। इसीलिए कोई विशेषज्ञ ही आवश्यक जाँच-पड़ताल के बाद सही निष्कर्ष पर पहुँच सकता है। इसका जल्द से जल्द उचित इलाज कराना बहुत जरूरी है क्योंकि इससे न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक विकास में भी स्थायी अवरुद्धता हो सकती है। दिल्ली स्थित एम्स और अपोलो अस्पताल में मैंने तकरीबन 100 से अधिक बौने बच्चों पर शोध किया है। इनमें एक या अधिक कारण मौजूद थे। सही इलाज मिलने के 6 माह से 12 माह के भीतर इन बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में आवश्यक सुधार हुआ।
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