कैसे होंगे भविष्य के आपरेशन थियेटरों 

  • by @ हेल्थ स्पेक्ट्रम
  • at November 23, 2019 -
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चीर-फाड़ रहित आपरेशनों के आविर्भाव के कारण अब कैंची-छुरियों एवं चीर-फाड़ के औजारों का स्थान इंडोस्कोपी, कैमरे और कम्प्यूटर संचालित आधुनिक उपकरण लेने वाले हैं। अब परम्परागत आॅपरेशन थियेटरों के स्थान पर इंडोस्यूट युक्त डिजिटल आॅपरेशन थियेटरों का निर्माण होने लगा है। स्ट्राइकर कंपनी की ओर से विकसित इंडोस्यूट आॅपरेटिंग सिस्टम की मदद से न केवल आॅपरेशन में कम समय लगता है, बल्कि आॅपरेशन भी शत-प्रतिशत कारगर एवं सफल होता है।

ने वाले समय में आपरेशन थियेटरों की तस्वीर पूरी तरह बदलने वाली है। इन आपरेशन थियेटरों से परम्परागत कैंची-छुरियों एवं चीर-फाड़ के काम में आने वाले अन्य औजारों की विदाई होने वाली है। कम से कम चीर-फाड़ (मिस अर्थात् मिनिमली इंवैसिव सर्जरी) या बिना चीर-फाड़ (निस अर्थात् नाॅन इंवैसिव सर्जरी) के किये जाने वाले आॅपरेशनों की गुंजाइश बढ़ने के साथ अब चाकू-छुरियों का स्थान कम्प्यूटर, माॅनिटर, कैमरे, स्कोप्स, इंसफलेटर्स, पम्प, शेवर्स, प्रिंटर और वी सी आर जैसे उपकरण लेने वाले हैं। भविष्य में बनने वाले ऐसे चलायमान एवं डिजिटल आपरेशन  थियेटरों से शल्य चिकित्सकों की क्षमता एवं गति बढ़ेगी, आपरेशन में कम समय लगेगा, आपरेशन  की कारगरता बढ़ेगी, आॅपरेशन के दौरान किसी तरह की गलती होने तथा मरीज को कोई जोखिम होने की आशंका घटेगी। आपरेशन की नयी तकनीकों के आगमन के साथ आज आॅपरेशन के परम्परागत तौर-तरीके तथा परम्परागत आपरेशन  थियेटर न केवल अपर्याप्त एवं अनुपयोगी साबित होते जा रहे हैं, बल्कि इनका संचालन कठिन एवं खर्चीला भी होता जा रहा है। लेकिन इसके साथ ही साथ आधुनिक समय में बनने वाले डिजिटल आॅपरेशन थियेटरों और उनमें मौजूद नवीनतम तकनीकों एवं आधुनिक उपकरणों के संचालन एवं प्रबंधन के लिये विशेष प्रशिक्षण तथा कौशल की आवश्यकता पड़ने लगी है। कई बार यह काम प्रशिक्षित कर्मियों के भी बूते का नहीं हो पाता। इन समस्याओं के निदान के लिये स्ट्राइकर कंपनी ने स्ट्राइकर इंडोस्यूट का विकास किया है जिससे आॅपरेशन थियेटर के संचालन से जुड़ी तमाम समस्याओं का समाधान मिल गया है। स्ट्राइकर इंडोस्यूट आॅपरेटिंग रूम (इंडोस्यूट ओ आर) में तमाम उपकरणों और तकनीकों का शल्य चिकित्सक के साथ पूर्ण समायोजन होता है और शल्य चिकित्सक के निर्देश के अनुसार सभी तकनीकों एवं उपकरणों का संचालन होता है जिससे चिकित्सक को आॅपरेशन में किसी तरह की असुविधा नहीं होती है, समय की बचत होती है और आॅपरेशन भी कारगर होता है। 
इंडोस्यूट में सभी उपकरण एवं तकनीकें कम्प्यूटर से संचालित होते हैं और एक-दूसरे से पूरी तरह जुड़े होते हैं। ये सभी उपकरण शल्य चिकित्सक की आवाज के आधार पर काम करते हैं। इससे आपरेशन  करने की सर्जन की क्षमता एवं गति बढ़ जाती है। सर्जन की अपने सहायकों पर निर्भरता कम हो जाती है। इसके अलावा इस आॅपरेशन को छात्रा अपने क्लास रूम में देख सकते हैं अथवा इनका किसी सेमीनार आदि में प्रसारण हो सकता है। आधुनिक आपरेशन थियेटर सेटेलाइट एवं इंटरनेट के जरिये अन्य आॅपरेशन थियेटरों से भी जुड़े रहते हैं। 
विश्व भर में इंडोस्यूट की धारणा तेजी से लोकप्रिय हो रही है। उनका कहना है कि इंडोस्यूट आपरेशन  थियेटर हमारे देश के लिये भी पूरी तरह उपयुक्त है। उन्होंने बताया कि आज सरकार, सरकारी एवं गैर सरकारी संगठन, बहुराष्ट्रीय कंपनियां एवं प्रवासी भारतीय चिकित्सा के क्षेत्रा में बड़े पैमाने पर निवेश कर रहे है। ऐसे में इंडोस्यूट आधारित आपरेशन  थियेटरों की स्थापना की गुंजाइश तेजी से बढ़ रही है। 
नयी दिल्ली स्थित इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ अस्थि शल्य चिकित्सक डा. राजू वैश्य बताते हैं कि इंडोस्यूट, कम्प्यूटर नैविगेशन सिस्टम और रोबोटिक सर्जरी जैसी नयी प्रौद्योगिकियों की बदौलत न केवल परम्परागत आपरेशन  की खामियों को दूर किया जा सकता है, बल्कि इनकी मदद से शल्य चिकित्सक आपरेशन  से पहले आॅपरेशन के बारे में समुचित योजनायें बना सकता है। यही नहीं, इन तकनीकों की बदौलत शल्य चिकित्सक को आॅपरेशन के दौरान भी कम्प्यूटर से यह सलाह मिलती रहेगी कि उसे किस दिशा में जाना है और किस गलती में सुधार करने की आवश्यकता है। खासकर जोड़ों को बदलने के आपरेशन  (ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी) आदि में ये तकनीकें काफी कारगर साबित हांेगी। ऐसे कठिन आॅपरेशनों में जरा सी भी गलती होने पर आॅपरेशन असफल होने की आशंका बनी रहती है, लेकिन इन आधुनिक तकनीकों के इस्तेमाल से आॅपरेशन में गलती होने की संभावना नगण्य हो जाती है। 
डा.राजू वैश्य का कहना है कि विकसित देशों की तरह भारत में भी इंडोस्यूट जैसी आधुनिक तकनीकों के व्यापक इस्तेमाल की गुंजाइश बन रही है। हालांकि आरंभ में इन तकनीकों की मदद से आॅपरेशन करना थोड़ा खर्चीला हो सकता है, लेकिन जैसे-जैसे इन तकनीकों का इस्तेमाल बढ़ेगा वैसे- वैसे इनका इस्तेमाल सस्ता होता जायेगा। 
श्री विक्रम सिंह बताते हैं कि इंडोस्यूट आधारित आॅपरेशन थियेटरों के निर्माण पर परम्परागत आॅपरेशन थियेटरों की तुलना में अधिक खर्च आयेगा, लेकिन इसमें परम्परागत आॅपरेशन थियेटरों की तुलना में कई गुना अधिक आॅपरेशन करना संभव हो सकेगा, जिससे प्रति आॅपरेशन पर आने वाला खर्च परम्परागत आॅपरेशन से काफी कम पड़ेगा। 
यही नहीं, आॅपरेशन के बाद मरीज को कम समय तक अस्पताल में रहना पड़ेगा तथा आॅपरेशन के अधिक कामयाब एवं कारगर होने के कारण आॅपरेशन के बाद उत्पन्न होने वाली जटिलतायें एवं समस्यायें भी उत्पन्न नहीं हांेगी। 
डा.वैश्य बताते हैं कि अपने देश मंे इंडोस्यूट जैसी तकनीकें उपलब्ध हो जाने से यहां के मरीजों को जटिलतम आॅपरेशनों के लिये अमरीका और ब्रिटेन जैसे विकसित देश जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, जहां इन आॅपरेशनों का खर्च भारत की तुलना में लगभग 10 गुना अधिक है। 
डा. वैश्य बताते हैं कि अभी तक किसी भी आॅपरेशन की सफलता सिर्फ शल्य चिकित्सकों की कुशलता पर ही निर्भर करती थी और इसलिये अलग-अलग शल्य चिकित्सक द्वारा किये जाने वाले एक ही आॅपरेशन की सफलता दर अलग-अलग होती थी। लेकिन इंडोस्यूट एवं अन्य नयी तकनीकों के आने से चाहे कोई भी शल्य चिकित्सक आॅपरेशन करे, आॅपरेशन में सफलता की दर परम्परागत आॅपरेशनों की तुलना मंें काफी अधिक होगी। 


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