वैज्ञानिकों ने मैमोग्राफी अथवा कोलोनोस्कोपी की तरह की एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिसकी मदद से कैंसर होने से वर्षों पहले बीमारी का पता चल जायेगा तथा उसी समय बीमारी का इलाज कर दिया जायेगा। इन वैज्ञानिकों को विश्वास है कि आने वाले समय में इस विधि का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल होने लगेगा।
इस तकनीक का विकास यूनिवर्सिटी ऑफ रोडे आईलैंड के सहायक प्रोफेसर और जैवभौतिकविज्ञानी याना रेशेटनियाक और ओलेग एंड्रीव ने की है। इस विधि से इलाज करने पर कैंसरजन्य ट्यूमर के आसपास की स्वस्थ कोशिकाओं को नुकसान नहीं पहुंचता।
यह तकनीक कोशिकाओं की अम्लीयता के स्तर पर आधारित है। जहां सामान्य कोशिकाओं में पी एच 7.4 या उसके आसपास होता है वहीं कैंसर कोशिकाओं में ऊर्जा का तेजी से विस्तार होता है। हालांकि वैज्ञानिक ट्युमर अम्लीयता के बारे में सालों से जानते हैं लेकिन वे इसे लक्ष्य करने के तरीके की खोज नहीं कर पाये।
वैज्ञानिकों के अनुसार इस पद्धति का इस्तेमाल अन्य बीमारियों के विकास की जांच और इलाज में भी किया जा सकता है। यह आर्थराइटिस, इंफ्लामेशन, इंफेक्शन, इंफ्रैक्शन और स्ट्रोक के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
कैंसरस ट्युमर का लक्ष्य करने के अलावा इन अनुसंधानकर्ताओं ने एक असाधारण डिलीवरी एजेंट एक मोलेकुलर नैनोसिरींज की भी खोज की है जो कैंसर कोशिकाओं में जांच करने वाले या इलाज करने वाले एजेंट को डिलीवर और इंजेक्ट कर सकता है। वैज्ञानिकों का विष्वास है कि यह अनुसंधान कैंसर का रेडियेशन से इलाज का एक नया, अधिक प्रभावी, महत्वपूर्ण और संभावित उपाय है।
न्यूयार्क के मैनहैटन में मेमोरियल स्लोअन-केटरिंग कैंसर सेंटर के रेडियोकेमिस्ट्री सर्विस के प्रमुख जैसन एस. लेविस कहते हैं, ''यह अनुसंधान बहुत ही उत्साहवर्द्धक है। इससे ट्यूमर के सूक्ष्म वातावरण को समझने में मदद मिलेगी। इसके अलावा कैंसर के तेजी से प्रसार में ट्यूमर का पी एच महत्वपूर्ण माना जाता है।
हाल में विकसित ये दोनों तकनीक नॉन-इनवैसिव होगी, यह कैंसर के संभावित फैलाव की भविष्यवाणी करने के साथ-साथ संभावित चिकित्सा के प्रभावी होने की निगरानी भी करेगी। ये तकनीक भविष्य में रोगियों के लिए व्यक्तिगत थेरेपियों की भी सुविधा उपलब्ध करायेंगी।
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